मेवाड़ की चित्रकला (मेवाड़ शैली)
- मेवाड़ चित्र शैली को उदयपुर चित्र शैली के नाम से भी जाना जाता है इस शैली का आरंभ महाराणा कुंभा के समय में हुआ
- राजा जगत सिंह के काल को मेवाड़ शैली का स्वर्ण युग का माना जाता है
- जगत सिंह प्रथम (1628-1652) के समय में चित्रकला को प्रोत्साहन के लिए मुगल कला की तर्ज पर चित्रकारों की चित्रशाला या चितेरो की ओबरी स्थापित की गई जहां पर कलाकार किसी एक मुख्य कलाकार के निर्देशन में चित्रण करते थे
- जय सिंह (1680-1698) के समय में रागमाला, रागिनीमारू, भागवत पुराण आदि ग्रंथ चित्रित किए गए
- जय सिंह के समय के भागवत पुराण पर आधारित गिरिगोवर्धन चित्र अत्यधिक प्रसिद्ध है
- साहिबद्दीन ने रागमाला, रसिकप्रिया, भागवत पुराण और रामायण के युद्ध कांड का चित्रण किया
- मनोहर ने रामायण के बालकांड का चित्रण किया
- बिहारी सतसई को जगन्नाथ नामक चित्रकार ने चित्रित किया इसके अतिरिक्त हरिवंश, सूरसागर आदि ग्रन्थ भी चित्रित हुए
- साहिबद्दीन के युद्ध संबंधी दृश्य में त्रिआयामी प्रभाव दिखाई पड़ता है
मेवाड़ शैली में चित्रित विषय
भागवतपुराण, सूरसागर, नायिका भेद, राग रागिनी, भगत रत्नावली, पृथ्वी रासो, दुर्गा महात्म, पंचतंत्र के साथ-साथ सामान्य जीवन एवं शिकार संबंधित दृश्य भी बनाए गए
मेवाड़ शैली के कलाकार
साहिबद्दीन, मनोहर, जगन्नाथ
मेवाड़ शैली की विशेषताएं
- मेवाड़ शैली में कदम के वृक्षों को अधिक बनाया गया है
- मेवाड़ शैली के चित्रों में धार्मिक चित्रों के साथ-साथ सामाजिक जीवन को भी चित्रित किया गया है
- मेवाड़ शैली का मुख्य केंद्र उदयपुर है इसके अतिरिक्त नाथद्वारा, चावंड, शाहपुरा, देवगढ़ आदि मेवाड़ शैली के उपकेंद्र है
- मेवाड़ शैली में चेहरों को सुरा के समान लाल रंग से बनाया गया है
- मेवाड़ शैली की स्त्रियां नाटी अथवा छोटी बनाई गई है, नाक नुकीली एवं चेहरा गोल है
- मेवाड़ शैली में पशु पक्षियों को अलंकारिक परंतु भावपूर्ण बनाया गया है
मेवाड़ शैली के चित्रों से जुड़ी कुछ विशेष बातें
- मेवाड़ शैली में लाल पीले रंग का अधिक प्रयोग हुआ है
- मेवाड़ शैली में सामाजिक और व्यक्तिगत भावनाओं का आधार लिया गया है
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