सौंदर्य किसे कहते हैं
इस विषय पर भी कलावादियों और उपयोगिता वादियों में गहरा मतभेद रहा। पुरातन आदर्शवादियों के लिए यह 'परम तत्व तक ले जाने का मार्ग' या 'सृष्टि में एक सुचालित व्यवस्था' है। उधर कलावादी हरबर्ट के अनुसार, "सौन्दर्य क्या है, कुछ नहीं, केवल जो वह है- सौन्दर्य"! सौन्दर्यानुभूति में सम्बन्धों की पूरी समझ आ जाती है और सौन्दर्यबोध का सही निर्णय संभव होता है।
अब कला में कई धाराएं प्रवेश कर गईं, इसमें सौन्दर्य--योग्यं गुणों पर अधिक बल दिया जाने लगा, और इस प्रकार कला-वस्तु चीर-फाड़ कर बारीक निरीक्षण के योग्य बन गई। यह बौद्धिक विलास का साधन बन कर, कलाकार के स्टूडियो से अध्ययन-कक्ष या प्रयोगशाला में पहुँच गई।
19वीं शताब्दी का अन्तिम काल कट्टर विज्ञान का युग था। यहां वैज्ञानिक चीर-फाड़ का ही बोलबाला था। तभी इस युग के लिए कहा गया- “मन के बिना मनोविज्ञान” “सौन्दर्य के बिना सौन्दर्य-शास्त्र"।
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