पेस्टल कलर माध्यम और तकनीक
पेस्टल (Pastal Colour)
पेस्टल आज सर्वसाधारण में प्रचलित माध्यम है। यह सर्वशुद्ध और साधारण चित्रण माध्यम है। प्रायः बच्चों को इस विधि से चित्रण का अभ्यास कराया जाता है। किन्तु सिद्धहस्त चित्रकार भी इसका प्रयोग करते हैं। चित्र रचना करते समय रंगों में किसी प्रकार का द्रव माध्यम मिलाने की आवश्यकता नहीं होती है। अतः इसे शुष्क माध्यम की श्रेणी में रखते हैं। रंगों के मिश्रण में विविधता की दृष्टि से इसमें सीमित बल ही उत्पन्न हो पाते हैं। रंग का प्रायः कागज पर से झड़ने का ख़तरा बना रहता है इसलिए फिक्सेटिव का प्रयोग करते हैं। जो स्प्रे करके पेस्टल द्वारा रचित कृति पर लगाते हैं, पेस्टल का दोष यही है कि इसका रख-रखाव बहुत कठिन है। रंगत की सीमित तान कल्पना और स्वतंत्रता को भी सीमित कर देती है। यदि श्रेष्ठ कागज और पूर्ण स्थायी रंगतों का प्रयोग करें तो यह चित्रण का सर्वाधिक स्थायी माध्यम है।
चित्रभूमि (Surface)—
पेस्टल के लिए खुरदुरेपन की विभिन्न श्रेणियों में तैयार कागज बाज़ार में उपलब्ध हैं। इस कागज के रोयें (Grains) इस प्रकार के होने चाहिए जो पेस्टल की बत्ती (Pastol Crayon) में से रंग छुड़ा सके और कागज के ऊपर से गिरने न दें। अतः कागज में चिकनापन या चिकने धब्बे बिल्कुल नहीं होने चाहिए । बोर्ड (Paper Board) पर बारीक रेत चिपकाने (जैसे- बारीक रेगमार कागज पर होता है) से भी पेस्टल के योग्य अच्छी भूमि तैयार होती है। जब पेस्टल से समस्त चित्रभूमि ढंक जाती है तो चित्रभूमि का रंग कैसा भी हो मायने नहीं रखता। परन्तु यदि चित्रण रेखांकन टाइप का हो या स्केची हो और पृष्ठभूमि यत्र-तत्र दिखाई पड़े तो उसका वर्ण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके लिए कई रंगों में पेस्टल कागज मिलते हैं। इसमें सफेद खुरदरी सतह वाले हैण्ड-मेड कागज(Hand-made Paper) पर भी चित्रण कर सकते हैं।
चित्रण विधि / तकनीक (Technique)–
पेस्टल रंग बाज़ार में गोल, चौकोर बत्तियों (Sticks) के रूप में मिलते हैं। चित्रभूमि पर इन बत्तियों को घिस कर रंग भरे जाते हैं। रंग की बत्तियों को प्रायः एक ही दिशा (Direction) में इस प्रकार घिसना चाहिए मानों एक दूसरे से मिलती हुई अनेक रेखायें खीच रहे हों । सभी दिशाओं में रंग की बत्तियों को घिसने से कागज के रेशे उखड़ने लगते हैं और बत्तियों पर ज़्यादा दबाव नहीं डालना चाहिये वरना वे टूट सकती हैं। पेस्टल रंगों में ताने या तो बत्तियों से रंग भरते समय ही हाथ के दबाव को कम-अधिक करके निकाली जाती हैं, ऐसे ही मिश्रित प्रभाव आता है। या फिर कागज से हल्के हाथों से घिसकर रंग मिलाये जाते हैं । पेस्टल रंगों को मिलाने के लिए उंगलियों से कदापि नही घिसना चाहिए नहीं तो उनमें धब्बे पड़ने का खतरा बना रहता है। पेस्टल रंगों में पर्याप्त चमक होती है, अतः वे गहरी रंगतों या गहरे बलों वाले धरातलों पर बहुत चमकते हैं। श्वेत कागज पर यद्यपि काम करना आसान होता है किन्तु उन पर पेस्टल रंगों के गुण और खासियत पूरी तरह से उभर कर नहीं आने पाते। रंग भरते समय रंगों का कुछ चूर्ण भी बनता रहता है अतः इसे हल्की फूंक से उड़ा देना चाहिए या कागज पर से धीरे से झाड़ देना चाहिए।
वैसे पेस्टल की तकनीक भी अन्य तकनीकों की तरह चित्रकार का व्यक्तिगत विषय है। वह अपने अनुसार प्रयोगकरते हुए भी कार्य कर सकने के लिए स्वतन्त्र होता है । तान के मधुर मिश्रण से लेकर मोटे-मोटे आघात (Strokes) (रंग-चालन) तक सभी प्रभाव इस माध्यम के द्वारा सम्भव हैं। कुछ लोग अंगुली को रंग मिलाने का श्रेष्ठ साधन मानते हैं तो कुछ चमड़े या कागज की बनी विभिन्न मोटाई की बत्तियाँ (Stumps) प्रयोग में लाते हैं । यह ध्यान रखना चाहिए कि रंग भरकर दूसरे स्थान पर न लगे इस ; चित्रभूमि को थोड़ा झुकाकर रखें तो बेहतर होगा, जब काम करें। रंगों के चूरे को सांसों में मुँह, नाक के माध्यम से जाने से रोकने का यत्न करना चाहिए। आंखों पर चश्मा लगा रहे जिससे आंख में चूरा न जाने पाये और मुँह पर हल्का मलमल का कपड़ा बांधे या मास्क लगा लें। बच्चों में लापरवाही से दिक्कत हो सकती है।
स्थायीकरण (Binding) –
साधारणतया इस प्रकार के चित्रों को बहुत सावधानीपूर्वक रखना होता है। पहले इनके रंगों और सतह को अक्षुण्ण रखा जाता था और एक विशेष प्रकार के शीशे के फ्रेम में इनहें लगाया जाता था, क्योंकि इनका स्थायीकरण नहीं किया जाता था। इसका फ्रेम विशेष होता था जिसमें शीशा चित्र को स्पर्श नहीं करता था। आज बाज़ार में स्थायीकरण माध्यम (Fixative Medium) आ गये हैं। विपरीत परिस्थितियों में बाज़ार में मिलने वाला हेयर स्प्रे भी इसमें स्थायीकरण का अच्छा काम करता है।
स्थायीकरण का सबसे अच्छा तरीका पेस्टल रंगों से बने चित्र को इस प्रकार फ्रेम करें कि फ्रेम का कांच चित्र को स्पर्श न करे तो चित्र बहुत समय तक सुरक्षित रहता है। वैसे कुछ घोल भी उपलब्ध हैं जिन्हें चित्र पर स्प्रे द्वारा फूंक दें या छिड़क दें तो सूखने पर चित्र पक्के हो जाते हैं। स्प्रिन्ट में चपड़ा लाख मिलाकर, अण्डे की सफेदी में पानी मिलाकर या क्राइलिन के पतले घोल से इस प्रकार का कार्य किया जाता है। ये घोल ही फिक्सेटिव (Fixative) कहलाते हैं। घोल को स्प्रे कर देने के पश्चात् चित्र के रंग कुछ फीके पड़ जाते हैं। अतः कहीं-कहीं चित्र में पुनः रंग लगाने की आवश्यकता पड़ती है, जिसे टचिंग कहते हैं।
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