Nicholas roric artist

रोरिक रोरिक 

भारत कला भवन संग्रहालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
निकोलस रोरिक का जन्म १० अक्टूबर,
१८७४ ई० में सेंट पीटर्सबर्ग में हुआ था। उन्होंने
‘अकादमी आफ फाइन आर्ट्स' में प्रवेश लेने के
पश्चात् पेरिस जाकर कला में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त
किया। १९०६-१९१६ ई० में वह सोसायटी फॉर
द इन्करेजमेंट आफ आर्ट्स के निदेशक पद पर
कार्यरत रहे तथा १९१० ई० में 'योरोपियन
सोसाइटी आफ वर्ल्ड आफ आर्ट' के प्रथम
सभापति के रूप में चुने गये। रूस में हुई क्रान्ति के
पूर्व आप देश छोड़ फिनलैण्ड, स्वीडन, डेनमार्क
देशों की यात्रा को चले गये। इस यात्रा के दौरान
आपने अपने चित्रों की प्रदर्शनियां की तथा चित्रों के
परिप्रेक्ष्य में भिन्न–भिन्न परिस्थितियों, वातावरण का अध्ययन किया। १९२० ई० में
योरोप छोड़ कर आप अमेरिका चले आये तथा १९२४ ई० में अमेरिका छोड़ मध्य
एशिया अभियान हेतु निकल पड़े। एशिया की चित्रावली के माध्यम से पूर्वी देशों
की आत्मा को पश्चिमी देशों में रूपान्तरित करने की उनकी प्रबल इच्छा थी। आप
भारत, चीन, तुर्कीस्तान, मंगोलिया और तिब्बत गये और इस प्रकार एशिया के हृदय
स्थल की पूर्ण परिक्रमा की। उनके चित्रों की संख्या इतनी अधिक एवं कालावधि
इतनी लम्बी है कि उनकी विस्तार से समीक्षा बहुत कठिन है। उनके चित्रों की तीन
अवस्थाएँ हैं- १. रूसी २. थियेटर और ३. एशियाटिक।
निकोलस रोरिक का शबीह
इस वीथिका में प्रदर्शित सभी चित्र स्वयं निकोलस रोरिक द्वारा दान में दिये
गये थे। प्राचीन हिन्दू एवं बौद्ध धर्म का परिचय देने के अतिरिक्त हिमालय और
तिब्बत के प्रभावों की श्रृंखला का दर्शन इन चित्रों के माध्यम से होता है। रोरिक को
'मास्टर ऑफ माउन्टेन्स' कहा गया है। रंगों के संबंध में उनकी विलक्षण
संवेदनशीलता विभिन्न रंगों (हरे, धूम्रवर्ण, नीले, लालिमायुक्त भूरे तथा आसमानी
नीले) के मध्य असाधारण सामन्जस्य स्थापित करती है जो उनके चित्रों में एक जादुई
प्रभाव उत्पन्न करती है। 'द स्टार आफ द हीरो' चित्र में हमें गहरे नीले और हरे रंग
की आभा का दर्शन गहरे काले रंग के साथ मिलता है। उनका अद्भुत प्रबल नीला
रंग, पर्वतों के बैंगनी साये के साथ 'कल्की अवतार' चित्र, जिसमें कल्की बादलों के
मध्य से आते दिखाये गये हैं, चमकदार बैंगनी रंग में विलीन हो जाता है जबकि
'आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का संग्रह करते चरक' का चित्र नीले रंग की आभा से
दीप्तिमान है।
उनके समस्त चित्र वनों, ऊंचे पर्वतों तथा दुर्लभ एवं चमकदार रंगों के रहस्य
और सौन्दर्य का संदेश प्रसारित करते हैं और इन सबके साथ आत्मिक उन्नयन को
समाहित करते हैं। इस महान चित्रकार का निधन अल्मोड़ा में १३ दिसम्बर, १९४७
को हुआ।
आप
उल्ल



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