कलाकार शैलोज मुखर्जी का जीवन परिचय
शैलोज मुखर्जी का जन्म एवं शिक्षा
शैलोज मुखर्जी की कला यात्रा
शैलोज मुखर्जी की पर लोक कला की परंपरा का प्रभाव भी दिखाई देता है इनकी गणना उन कलाकारों में की जाती है जिन्होंने अपनी आधुनिक कला को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए लोक कलाओं का सहारा लिया इनकी कला में परंपरा और भारतीयता सदैव बनी रहे इनके प्रमुख विषय पारंपरिक शास्त्री या साहित्य ना होकर दैनिक जीवन से जुड़े होते थे प्रतिपल स्पंदन करते नर नारी बदलता हुआ प्राकृतिक रूप तथा पशु पक्षी भी आकर्षक लगते हैं
शैलोज मुखर्जी चित्रों का निर्माण प्रबल इच्छा होने पर ही करते थे मुखर्जी का जन्म उस समय हुआ जब भारतीय कला का अपने संक्रमण काल से गुजर रही थी अवनींद्र नाथ ठाकुर द्वारा विकसित की गई वास परंपरा का देश में वर्चस्व था वहीं दूसरी तरफ अमृता शेरगिल की पश्चिमी प्रभाव से युक्त शैली में भारतीय विषयों का चित्रण था विषाद दुख दीन हीनो का चित्रण किया गया था
यूरोप, मिश्र, तिब्बत, सिक्किम तथा अन्य कई देशों की यात्राओं ने शैलोज मुखर्जी के सृजन में चार चांद लगा दिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सेलों द माइ, पेरिस संस्था सदस्य भी रहे 1944 ईस्वी में Sharda vakil school off art में अध्यापन भी किया तत्पश्चात दिल्ली के पॉलिटेक्निक कला विभाग में अध्यापन रत रहे शैलोज के चित्रों में सादगी, भव्यता, सपाट धरातल, आकृतियों का लंबापन, रेखा एवं रंग रंग की सशक्त व्यंजना, रंगों का संतुलित उपयोग, आकृतियों का कुशल संयोजन, शक्ति पूर्ण संरचना आदि उनकी शैली की महत्वपूर्ण विशेषताएं रही है
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