भारतीय परंपरा के पुरोधा जगन्नाथ मुरलीधर अहिवासी
चित्रकला की विशेष शिक्षा के लिए अहिवासी ने 1920 ईस्वी में जे जे स्कूल आफ आर्ट प्रवेश लिया यहां पर इन्होंने व्यक्ति चित्रण में विशेष कुशलता हासिल की धीरे धीरे इनकी ख्याति देश में फैलनी प्रारंभ हो गई मुंबई में ही एक गोसाई मंदिर में यह रहने लगे पिता की मृत्यु के पश्चात गुजरात वापस आकर एक मंदिर में भजन कीर्तन करने लगे लगे घर के पास में डॉ डी जी व्यास रहते थे जिनके साथ मुंबई वापस आए और तत्कालीन प्रधानाचार्य ग्लैडस्टोन से इनका परिचय कराया और उन्होंने अहिवासी जी को म्यूरल स्कूल के की छात्रवृत्ति देकर प्रोत्साहित किया 1926 ईस्वी में बॉम्बे आर्ट सोसायटी का रजत पदक मिला 1930 में जे जे स्कूल ऑफ आर्ट में चित्रकला के भारतीय परंपरागत शैली विभाग में अध्यापक के रूप में नियुक्त किए गए 1950 में विभागाध्यक्ष भी बने इन के सानिध्य में हुआ एके शुक्ल दिनेश शाह दिनेश बस्सी प्रदुमन थाना के के लक्ष्मण पर अब्दुर्रहीम अप्पा भाई ऑल में करने शिक्षा प्राप्त की 1956 में जेजे स्कूल आफ आर्ट से काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ललित कला एवं संगीत महाविद्यालय में 1957 से 66 तक कार्य किया 1974 में आकाश में इनका निधन हो गया
जिस परिवार में इनका जन्म हुआ था वह वैष्णव भक्ति शाखा से जुड़ा हुआ था इसीलिए इनके सृजन पर वैष्णो कला की सहज वृत्ति सिल विधान लोक आश्रित रूप योजना एवं भारतीय परंपरागत सौंदर्य बोध दिखाई पड़ता है इन्होंने अपने सृजन को परंपरा से जुड़ने के लिए अजंता एलोरा एलिफेंटा बाग बादामी शीतल वासन गुफाओं की यात्रा तैयार की इनकी अनु कुर्तियों का ललित अंकुर पर ललित कला अकादमी द्वारा 1956 में स्वर्ण पदक मिला
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