sudhir ranjan khastagir

सुधीर रंजन खस्तगीर

भारतीय कला का एक ऐसा आधार स्तंभ जिसने आधुनिक कला के विषय में प्रचलित इस मिथक को तोड़ा की आधुनिक कला के विकास के लिए यूरोप की अंधी अनुकृति आवश्यक है अपनी कला को अर्थ वान बनाने के लिए सुधीर रंजन खस्तगीर ने सदैव अपनी पुरातन परंपराओं से जुड़ते रहे इसीलिए सुधीर रंजन खस्तगीर को लोग चित्रकार की पदवी से भी नवाजा गया है

जन्म

सुधीर रंजन खस्तगीर का जन्म सितंबर 1960 ईस्वी में बांग्लादेश के सीट गांव में हुआ था इनके पिता एक इंजीनियर से बचपन से ही इनकी चित्रकला में विशेष रूचि देखने को मिली

शिक्षा

1925 ईस्वी में खटके ने उच्च शिक्षा के लिए शांति निकेतन में भेजा गया जहां पर पुलिस ने ने क्रांतिकारी समझ कर पकड़ लिया पढ़ाई छोड़ कर घर लौट आए परंतु पुणे 1928 ईस्वी में शांति निकेतन में प्रवेश लिया जहां पर अनिल नाथ टैगोर व नंदलाल बस के सानिध्य में करा शिक्षा प्राप्त की शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात आऊंगी नाथ के आग्रह पर देश की कला एवं संस्कृति को समझने के लिए कोर्णाक अजंता एलोरा एलिफेंटा महाबलीपुरम का भ्रमण किया ग्वालियर के सिंधिया स्कूल मैं अध्यापक के रूप में 4 साल तक काम किया तथा 1936 में दून पब्लिक स्कूल देहरादून में कला विभाग के अध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएं दी

1937 में विदेश भ्रमण के लिए पेरिस इंडिया ऑस्ट्रेलिया जर्मनी तथा इंग्लैंड गए वहां पर महान कलाकारों की कृतियों को देखा डॉक्टर आनंद कुमार स्वामी व इंग्लैंड में अरे गिल से काफी प्रभावित हुए इंग्लैंड में ही कान सिलाई का प्रशिक्षण सुधीर रंजन खस्तगीर ने प्राप्त किया भारत में कौन चलाई की सुविधा ना होने के कारण सीमेंट और प्लास्टर को अपना माध्यम बनाया 1956 में सुधीर रंजन खर्च गिर को उत्तर प्रदेश के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट लखनऊ में प्राचार्य पद पर नियुक्ति दी गई जहां पर लगातार 1961 तक सेवाएं देते रहे

कलायात्रा

भारतीय कला के पटल पर सुधीर रंजन खर्च गिरने अपनी उपलब्धि उपस्थिति दर्ज कराई है उन्होंने मूर्तिकला छापा चित्रकला का चित्र पेंसिल स्केच आर्कोर आज सभी विधाओं में कार्य किया है भारतीय लोक परंपरा पौराणिक आख्यान तथा राष्ट्रीय पृष्ठभूमि के जिज्ञासु तिरुपति का इनका व्यक्तित्व रहा है जो इन के चित्रों के विषयों के रूप में भी देखा जा सकता है
सुधीर रंजन खत्री ने कहा था आधुनिकता को समझने के लिए हमें यूरोप की ओर देखने की आवश्यकता नहीं है हम भारतीय हैं हमारी परंपरा इतिहास हमारा ज्ञान भी उच्च कोटि का है भाव एवं संवेदना को समझने का हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है हमारे समाज तथा सभ्यता में अभिव्यक्त की अपूर्व शक्ति है
सुधीर रंजन की कलाकृतियों में पलाश के फूल बार-बार उभरे तथा नृत्य पर भी लगातार चित्र बनाते रहे चित्रों की वाणी योजना गहरी चित्र में रेख आत्मक सा अलंकार एवं गतिशीलता पर बल दिया गया है पृष्ठभूमि एवं अगर भूमि है तूलिका के लंबवत आघात उनके चित्रों की विशेषता रही है 1960 में गोमती नदी की विनाशकारी बाढ़ ने लखनऊ के कि अधिकांश कलाकृतियों को नष्ट कर दिया जिससे इनका मन काफी दुखी रहने लगा और खुद को एकांतवास में कैद कर लिया आखरी समय में शांतिनिकेतन चले गए वहीं पर एकांत में जीवन व्यतीत करते हुए कला सृजन करते रहे 27 मई 1974 को कोलकाता में इनकी मृत्यु हुई

लेखन

सुधीर रंजन फर्स्ट गिरने 1946 में मॉडल वीवो के लिए छोटे-छोटे लेख लिखे साथ ही इलस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इंडिया, ओरियंट इलस्ट्रेटिड वीकली में अपने लेख भी लिखें

चित्र

बाउल डांस मां और शिशु गरीब की दुनिया नववधू अमलतास के पुष्प तूफान में यात्री अधिक अनूप जाओ आफरीन सीटिंग फायर  वर्ल्ड बाथ प्रकृति मिलन दुल्हन


पुरस्कार

पद्म श्री

Not

कलाकारों के विषय में और अधिक जाने

Post a Comment

और नया पुराने