हस्त निर्मित कलाएं
हस्तकला की परिभाषा
“हस्त निर्मित सभी कलात्मक वस्तुएं जो रचनात्मक हो, जिसमे मशीन का प्रयोग ना हो हस्तकला कहलाती है।"
हस्तकला का परिचय
हस्तकलाओं का जन्म एवं विकास मूलतः मनुष्य की आवश्यकताओं से संबंधित है। शुरुआत में यह अप्रशिक्षित ग्रामीण लोगों के रचनात्मकता का उदाहरण था । मनुष्य अपनी आवश्यकता के वशीभूत होकर अपनी दैनिक उपयोग की वस्तुओं को खाली समय में निर्माण करता रहा। बाद में यह वंशानुगत हो गया। ऐसा समाज का वर्ग जो हस्तकला से संबंधित है और निर्भर भी संस्कृति मंत्रालय ने ऐसे वर्गों को बढ़ावा देने के लिए इसे "कला" के अंतर्गत रखा और देश के विभिन्न हिस्सों में शिल्पमेले या क्राफ्टमेले का आयोजन करता है। जिससे कि हस्तकला से जुड़े कलाकारों का सामाजिक और आर्थिक पक्ष मजबूत हो सके
ऐसे लोगों को अपनी पहचान और सम्मान भी मिल सके। हस्तकलाओं के अंतर्गत दो प्रकार की वस्तुओं का निर्माण हुआ है एक दैनिक जीवन में उपयोग की दूसरी स्वतः सुखाय, सजावटी वस्तुएं यदि हम हस्तकला को श्रृंखलावद्ध अपने अतीत से जोड़े तो पाएंगे कि प्रागैतिहास काल का मनुष्य अपने हाथों द्वारा जानवरों के पुढो की हड्डी से प्याली पत्थरों से सील-बट्टे औजार, सैन्धव सभ्यता में सजावटी मृदभांड, बैलगाडी, टेराकोटा की चिड़िये वाली सीटियां इत्यादि खिलौने, मौर्य कालीन कौशांबी से ढेरों टेराकोटा खिलौने ताइपत्रों पर बने पाल और जैन पोथिया, मुगलकालीन यशब (पाटरी), हाथी दांत पर नक्काशी इत्यादि हस्तकला के प्रभावी उदाहरणों को प्रस्तुत करते हैं।
वर्तमान में हस्तकला एक उद्योग के रूप में लाखों कारीगरों कलाकारों के सम्मान, पहचान और जीविका का स्रोत बना हुआ है। आज भारत सरकार भी कौशल विकास को बढ़ावा देने हेतु तत्पर है। अंत में हम भारत के प्रसिद्ध हस्तकला के नमूनों पर प्रकाश डाल देते हैं जो कि विश्व विख्यात भी हैं -
- 1 दक्षिण भारत में चमड़े पर की जाने वाली कलमकारी
- 2 जयपुर की ब्लू पाटरी
- 3. पंजाब की फुलकारी
- 4 कोल्हापुरी चप्पलें इत्यादि
- 5 रामपुर निजामाबाद की ब्लैक पाटरी
- 6 भदोही उत्तर प्रदेश की कालीन
- 7 बनारस की साड़ियां
- 8 चिनहट उत्तर प्रदेश की टेराकोटा
- 9 मुरादाबाद का पीतल उद्योग
- 10 बांसुरी पीलीभीत
- 11 लकड़ी की गाड़ी वजीरगंज उत्तर प्रदेश
- 12 चिकनकारी लखनऊ उत्तर प्रदेश
इसी क्रम में ग्रामीण अप्रशिक्षित महिलाओं और पुरुषों द्वारा अद्भुत हस्तकला के प्रदर्शन होते रहे है जिसे अब शिल्प मेले के शक्ल में मंच मिलना प्रारंभ हो चुका है। यथा खटिया आसनी, बेना, पंखी, मऊनी, विड़वा, दउरी, गोनरी, घट, कैरीबैग, एप्लीक चादर-साड़िया खिलौने आदि।
कोलाज चित्र
इसे फ्रेंच में COLLER (गोंद) या एक साथ रखना कहते हैं यह दृश्य कला की इस तकनीक का प्रयोग 13वीं शताब्दी में यूरोप में दिखाई दे ता है और 15वीं शताब्दी से 16 वीं शताब्दी के दौरान यूरोप के गोथिक गिरजाघर में सोने की पत्तियों के पैनल लगाये जाने लगे रंगीन पत्र पत्रिकाएं अखबार की कतरनो, रिबन, पेट, ग्रंथों के अंश तस्वीरों एवं अन्य सुतली धागे, गोबर भूसी आदि को एक साथ किसी कागज या कैनवास पर एक आकार की शक्ल में चिपकाकर संयोजित करने की विधि को कोलाज चित्रण कहते हैं। कोलाज का आविष्कार लगभग 200 ई०पू० कागज के आविष्कार के साथ चीन में हुआ। इस तकनीक का इनके विकास का श्रेय 1912 ईस्वी में घनवादी कलाकार पाब्लो पिकासो एवं ब्राक को जाता है। पिकासों की कोलाज पेंटिंग द हेड व हेनरी मॉतिस की पेंटिंग न्यूड ॥ व ब्लू न्यूड मे हम कोलाज का प्रयोग देख सकते हैं। अमेरिका रो- जिम छाइन एवं एण्डी वारहोल द्वारा 1962 ई० में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जिसमें कागज के रैपरो, लेबलो, टिन के डिब्बों, बिपर की बोतलों, माचिस की डिब्बी, सुतली धागों को एक साथ संयोजित करके एक नई कोलाज शैली को विकसित की गई आगे चलकर ब्रिटेन में इसे ही पॉप आर्ट कहा गया। भारत में कलाकार जगमोहन चोपड़ा ने कोलाज से कोलीग्राफी एक नई शैली को जन्म दिया। आज के युवा कलाकार मिश्रित माध्यम नवाचार के लिए अपनी कृतियों में कोलाज का प्रयोग स्वतंत्र रूप से कर रहे हैं।
कोलाज चित्रों में प्रयुक्त सामग्री
गोंद व फेवीकोल
पेंसिल, पोस्टर रंग
क्लिपबोर्ड
कैनवास / सफेद या रंगीन कम से कम A4 आकार का कागज
रंगीन एवं पुरानी पत्र पत्रिकाये न्यूजपेपर आदि
कैची एवं स्टैंसिल नाइफ
अन्य नवाचार हेतु हम किसी भी वस्तुओं का प्रयोग कर सकते हैं यथा बालू, चुना, भूसी, गोबर सुतली धागा लेबिल या कोई भी ठोस सामग्री
स्रोत D.El.Ed by Up SCERT
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