निकोलस रोरिक 1874-1947
भारत की संस्कृति कला एवं अध्यात्म से प्रभावित होकर भारत को ही अपनी कर्मस्थली बनाने वाले कलाकारों में निकोलस रोरिक का नाम प्रमुखता के साथ लिया जाता है निकोलस रोरिक ने हिमालय की अद्भुत छटा को अपने चित्र फलक पर उकेरा हैं जिन्हें देखकर अध्यात्म की पराकाष्ठा का अनुभव किया जा सकता है तथा उन में छुपे हुए रहस्य को समझा जा सकता है
निकोलस रोरिक का जन्म 1874 ईस्वी में सेंट पीटर्सबर्ग में हुआ था बचपन से ही इनको कला एवं इतिहास में विशेष रूचि थी वकालत की पढ़ाई के बाद भी इनकी कला के प्रति रुचि कम ना हुई आगे चलकर इन्होंने कला को ही अपने जीवन का मुख्य ध्येय बनाया कला की शिक्षा रूसी दृश्य चित्रकार अर्खिप कुईन से प्राप्त की निकोलस रोरिक ने वास्तविक जीवन की अपेक्षा ऐतिहासिक विषयों को काल्पनिक दृष्टिकोण से चित्रण करना प्रारंभ किया इन चित्रों में इन्होंने वरिष्ठ नारियों नारी आकृतियां विशाल का भारी नौकाओं पर्वतों तथा घाटियों का ऐसा लोक सृजित किया है जहां प्रत्येक वस्तु ठोस तथा शक्तिशाली दिखाई पड़ती है जो स्पष्ट और स्थाई का भाव लिए हुए हैं प्राचीन पूजा ग्रहों मीनारों नगरों को घेरने वाली प्रकोष्ठ दीवारों के 80 से अधिक चित्र निकोलस रोरिक ने बनाए
निकोलस रोरिक ने बड़े आकार के भित्ति चित्रों को भी निर्मित किया है वस्तुकारों के साथ-साथ भवन तथा चित्रकला के समन्वय की समस्या पर भी इन्होंने विचार किया है मनकुट्टी वृत्तचित्र पैनल चित्र आदि भी अंकित किए हैं 1910 ईस्वी में पीटर्सबर्ग के विशाल भवन में भित्ति सज्जा की थी इस समय रंग योजना में हरे गुलाबी सुनहरे रंगों का प्रयोग अधिक दिखाई पड़ता था
निकोलस रोरिक ने प्रकृति को भी मानवीय परिपेक्ष में चित्रित करने का प्रयास किया है ब्रिज पर्वत में आदि सभी सक्रिय दिखाई पड़ते हैं स्टेज सेटिंग भित्ति चित्रण कैनवास चित्रण आदि सभी में रोरीक की अलंकारिक प्रवत्ति दिखाई पड़ती है
निकोलस रोरिक ने अपने देश के बेले निर्माताओं के साथ मिलकर दृश्य कलाओं एवं अभिनय का एक सफल समन्वय प्रस्तुत किया विश्व भर के नाटयकर्मी जिस से प्रेरणा लेकर अपने-अपने क्षेत्र में प्रयोग करते थे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान धार्मिक विषयों की ओर मुड़ गए सामाजिक पीड़ा ने इन्हें अत्यधिक प्रभावित किया 1916 में बीमार हुए और चिकित्सा के लिए फिनलैंड गए 1917 में रूस की प्रसिद्ध अक्टूबर क्रांति हुई वह अपने देश से कट गए बाद में कुछ देशों में रूसी कलाकृतियों की देखभाल का काम सौंपा गया वह अमेरिका भी गए न्यूयार्क में उनके प्रशंसकों ने 1923 में रोरिक संग्रहालय की स्थापना की
1920 में निकोलस रोरिक भारत के लिए दो पुरातत्विक अभियानों के लिए आए 1928 में स्थाई रूप से हिमाचल प्रदेश के कुल्लू नगर में बस गए जीवन के अंतिम साल यहीं पर वितरित किए इस समय बनाए गए हिमालय के इनके दृश्य अत्यधिक प्रसिद्ध रहे हैं इन्हें देख कर ऐसा लगता है कलाकार ने अपने जीवन का अनुभव हिमालय की महान सौंदर्य को साक्षात करने में लगा दिए हो कलाकार ने नीले रंग का कुशल प्रयोग किया है जो कलाकृति में रहस्य की भावना को जगाता है हिमालय की लुभाती चोटियां मनमोहक दृश्य देखकर मन आनंदित हो जाता है
रोली की कला भारत के सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई क्योंकि इसमें अध्यात्मिक प्रतीक के साथ-साथ हिमालय का अंकन था भारत में उनकी बहुत प्रशंसा हुई अनेक कलाकार वैज्ञानिक तथा राजनीतिक उनका सम्मान करने लगे रविंद्र नाथ ठाकुर जवाहरलाल नेहरू आदि अनेक महापुरुषों से मिलने पहुंचते उनके चित्र संसार के अनेक संग्रहालय में है तथा उनकी पुस्तकें इंग्लैंड अमेरिका एवं भारत में प्रकाशित हुई है
चित्र
- निकोलस रोरिक ने बनारस श्रृंखला के चित्र भी बनाए हैं जिनमें बुद्ध, कलिक अवतार, राम कृष्णा आदि महत्वपूर्ण हैं इसी तरह उन्होंने प्रयाग चित्र श्रृंखला में द अहर्त, मैत्रेय, शी हू लीड्स आकृतियां बनाई है
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