रविंद्र नाथ टैगोर
अब तक मैं अपनी भावनाओं को साहित्य संगीत में व्यक्त कर रहा हूं पर मेरी आत्मा व्यक्त के तरीके अपूर्ण रहे अता भाव प्रकटीकरण के लिए चित्रित रेखाओं का सहारा ले रहा हूं
शरीर के लिए प्याज के अलावा एक और भी प्यास मनुष्य को लगती है
रविंद्र नाथ टैगोर
रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मार्च 1861 ईसवी को जोड़ासाँको पश्चिम बंगाल में हुआ था इनके पिता देवेंद्र ठाकुर थे रविंद्र नाथ उच्च कोटि के साहित्यकार के साथ ही नाटककार, उपन्यासकार, संगीतज्ञ, दार्शनिक, अभिनेता, चित्रकार आदि विधाओं में पारंगत है 1901 में उन्होंने कोलकाता में शांतिनिकेतन की स्थापना की 1913 में इन्होंने अपनी कृति गीतांजलि के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया 1919 में शांति निकेतन में कला भवन की स्थापना की जिसका प्रथम अध्यक्ष नंदलाल बोस को नियुक्त किया गया इनका चित्रकला की ओर झुकाव 1926 में यूरोप यात्रा के दौरान हुआ उन्होंने यूरोप में चित्रकला को देखा और समझा लगभग 67 वर्ष की अवस्था में रविंद्र नाथ टैगोर ने लेखन बंद कर चित्रण प्रारंभ किया गुरुदेव की कला शैली को समन्वयात्मक शैली कहा जाता है
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को भारत में आधुनिक अमूर्त कला का जन्मदाता तथा आधुनिक भारतीय कला का प्रथम अंतरराष्ट्रीय चित्रकार कहा गया है इनके आरंभिक चित्र पेंसिल से बने हैं काल्पनिक जानवरों तथा मन की अनुभूतियों को अंकित किया है बाद में उन्होंने कपड़े के टुकड़ों, धागों तथा अंगुलियों को स्याही में डूबा कर विविध प्रकार के प्रयोग कर नवीन संभावनाओं को तलाशा
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के चित्रों की प्रथम प्रदर्शनी 1930 में पेरिस के पंडाल आर्ट गैलरी में हुई जिसकी अत्यधिक प्रशंसा की गई इसके पश्चात अनेक यूरोपीय देशों तथा भारत में मुंबई, कोलकाता आदि स्थानों पर आयोजित की गई 1946 ईस्वी में यूनेस्को द्वारा आयोजित अंतर राष्ट्रीय आधुनिक कला प्रदर्शनी में भी गुरुदेव के 4 चित्र प्रदर्शित किए गए
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