के वेंकटप्पा
के वेंकटप्पा का जन्म कलाकार पृष्ठभूमि में हुआ इनका परिवार सोने की पत्ती के प्रयोग की पारंपरिक शैली में पारंगत था इनकी आरंभिक शिक्षा मैसूर में हुई तथा कला की विशेष शिक्षा बंगाल कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट में हुई। इन्हें अवनींद्र नाथ ठाकुर का विशेष सानिध्य प्राप्त हुआ यह स्वयं को पुनर्जागरण काल आंदोलन की धारा से जोड़ते थे तथा अपने आप को कर्नाटक का कलाकार का लाने में गर्व महसूस करते थे
वेंगटप्पा 1920 के आसपास मैसूर में जा बसे यहां पर अपना एक स्टूडियो भी बनाया यहीं पर इन्होंने रामायण और महाभारत से संबंधित अपनी श्रेष्ठ कलाकृतियों का सृजन किया है प्रताप सिंह, शंकराचार्य, शिष्यों के साथ बुद्ध, महाशिवरात्रि, दमयंती, टीपू सुल्तान, एक पारसी महिला अपने सिंगार कक्ष में आदि कुछ इनकी श्रेष्ठ चित्र हैं इनके दो चित्र अर्धनारीश्वर और चरित पक्षी काफी महत्वपूर्ण है जिन्होंने भारत के साथ-साथ विदेशों में खूब ख्याति प्राप्त की
चरत पक्षी चित्र पक्षी चित्रण का संपूर्ण चित्र है जो फारसी, मुगल, पहाड़ी शैलियों से भी श्रेष्ठ है इस कलाकृति की डब्लू रोथिंस्टीन ने भूरी भूरी प्रशंसा की है और कहा है वेंकटप्पा किसी भी कला विद्यालय के प्राचार्य बनने के योग्य हैं अर्धनारीश्वर ब्रश से बनाई गई कलाकृति है जिसमें रेखाओं की बारीकी और रंग संगती के साथ-साथ चित्रकला की सूक्ष्मता और उत्कृष्ट अभी दिखाई पड़ती है यही कारण है इसमें दैव छवि ऐसी उमरी जो अभी तक चित्र के रूप में नहीं दिखाई पड़ी थी
वेंकटप्पा को ऊटी और कोडाईनाल के अनूठे चित्रों के लिए विशेष प्रसिद्धि मिली उन्होंने अपने दृश्य चित्र में प्रकाश और रंग के आयामों के साथ-साथ पर्वती दृश्य, ब्रिज, लताएं, फूल, जल, आकाश, बादल, रात्रि, प्रभात, चंद्रोदय, पूर्णचंद्र, स्वच्छ झील, उसमें प्रतिबिंबितछाया, घटिया और उनका विस्तार, अंतरालों की लुका छुपी, पत्थरों की कठोर एवं कोमल प्रभाव, चमकीले रंगों, वर्षा के कारण मंडित पर्वत की ढाल की सादगी, धुंध, गोधूली के प्रकाश का खेल, मानसून की शुरुआत, आंधी रात में झोपड़ी सहित पर्वतों की गौरव गरिमा आदि प्रभाव को स्पष्ट रूप से अंकित किया है यह उनकी निजी अभिव्यक्ति को और प्रभावशाली बना देता है
हाथी दांत पर चित्र बनाने में भी काफी निपुण थे s v रामास्वामी मुदलियार ने हाथी दांत पर वेंकटप्पा से एक आत्म चित्र बनवाया था जिसके बारे में जी वेंकटाचलम ने लिखा भी था यह उनकी इस माध्यम की श्रेष्ठ कृति है 1913 में टेंपरा माध्यम पर एक विस्तृत लेख लिखा था जिस पर इन्हें पुरस्कार भी मिला था इसमें चित्रकला के विशेष लक्षण गिनाए हैं इन्होंने अपने रंग, सामग्री, ब्रश स्वयं तैयार किए जिससे उनकी शुद्धता और स्पष्टता बनी रही नीले, गेरूए, हरे, पीले रंगों की चमक विशेष रूप से आकर्षित करती है इन्होंने बंगाल चरत चित्र में फूल के लिए श्वेत रंग का प्रयोग किया बाद में वह तारा अथवा फूल के चमकदार श्वेत रंग को प्रदर्शित करने के लिए बोर्ड को खाली स्थान छोड़ दिया
चित्रकला के साथ-साथ मूर्तिकला में भी इन्होंने अपनी पहचान बनाई मीणा शेषन्ना जो इनके गुरु थे इनकी मूर्ति काफी प्रसिद्ध दे रही है
मैसूर के अंबा हॉल में 108 फीट की दीवार के लिए इन्होंने 7 मूर्ति शिल्प बनाए हैं जो इस प्रकार हैं महान आत्मात्याग, बुद्ध भिक्षु वेश में, राम हनुमान को अंगुली मुद्रा देते हुए, द्रोण पांडवों को धनुर्विद्या सिखाते हुए, एकलव्य धनुर्विद्या का अभ्यास करते हुए, शिव नृत्य और शकुंतला की विदाई आदि प्रमुख हैं यह मूर्तियां खुले स्थान के लिए तैयार की गई थी शारीरिक संरचना की दृश्य इन में किसी भी प्रकार का कोई दोष दिखाई नहीं देता है और सौंदर्य की दृष्टि से भी हृदय को काफी संतोषप्रद लगती हैं
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