yagneshwar kalyanji shukla

यज्ञेश्वर शुक्ल

जन्म        10 सितंबर 1960 पोरबंदर गुजरात 
मृत्यु         15 फरवरी 1986
शिक्षा       जेजे स्कूल आफ आर्ट मुंबई ,छापा कला में अब लंकन उत्कीर्ण की शिक्षा रॉयल अकैडमी आफ फाइन आर्ट रोम इटली से प्राप्त की
शिक्षण      जे जे स्कूल ऑफ आर्ट प्रोफेसर एवं डीन के पद पर कार्य किया, वनस्थली विद्यापीठ राजस्थान विजिटिंग प्रोफेसर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय विजिटिंग प्रोफेसर
शोध कार्य    भारतीय मंदिरों के मूर्ति खजुराहो तथा गुजरात के संदर्भ में, फ्रेस्को पेंटिंग राजस्थान

           सहज सरल स्वभाव के  व्यक्तित्व के धनी थे वाई के  शुक्ल इनके पिता अहमदाबाद में चित्रकला के शिक्षक के पद पर नियुक्त थे पिता से ही कलाकारी विरासत में प्राप्त हुई हाईस्कूल की पढ़ाई करते हुए चित्रकला का अभ्यास जारी रखा अहमदाबाद आकर रविशंकर रावल के नेतृत्व में चित्रकारी की बारीकियां सीखी धीरे-धीरे इनकी ख्याति बढ़ने लगी 1930 में सर जेजे स्कूल आफ आर्ट मुंबई में प्रवेश लिया जहां पर भारतीय कला के विशेषज्ञ श्री जगन्नाथ मुरलीधर अहिवासी से टेंपरा और वास पद्धति की बारीकियों को सीखा जे जे स्कूल आफ आर्ट से शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात 1934 में इटली गए वहां पर रोम की रॉयल एकेडमी आफ फाइन आर्ट से 1939 में ऑनर्स के साथ डिप्लोमा की परीक्षा उत्तीर्ण की यहीं पर भित्ति चित्र, इचिंग, वुड कार्विंग जैसी छापा कला की विधियों में विशेष योग्यता प्राप्त की 1947 में चीन की राष्ट्रीय कला संस्थान से डिप्लोमा प्राप्त किया 1940 मे देश में आगमन के पश्चात जे जे स्कूल आफ आर्ट मुंबई में कला शिक्षक के पद पर नियुक्त हुए 1960 में गुजरात सरकार ने इन्हें ड्राइंग तथा क्राफ्ट कार्य के इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त किया 1966 के राष्ट्रीय कला अकादमी नई दिल्ली के कार्यकारिणी सदस्य भी रहे 1960 में वियना आस्ट्रेलिया में यूनेस्को द्वारा विश्व के छापाकारों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जिसमें भारतीय दल का प्रतिनिधित्व योगेश्वर शुक्ल ने किया 1970 के मध्य वनस्थली विद्यापीठ राजस्थान में एमरीट्स प्रोफेसर तथा 1983 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में विजीटिंग प्रोफेसर के पद पर कार्य किया

           यज्ञेश्वर शुक्ल उन भारतीय कलाकारों में से एक हैं जिन्होंने भारतीय कला के विभिन्न विधाओं में कार्य किया और इन्हें विशेष रूप से छापा कला के लिए जाना जाता है भारत में छपा कला के प्रचार प्रसार में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा या भारत के प्रारंभिक छापा कारों में से एक रहे हैं उन्होंने छापा कला का विशेष अध्ययन विदेश में जाकर किया भारत में आने के पश्चात इस विधा को आगे बढ़ाया वाई के शुक्ल का जन्म 1960 ईस्वी में सुदामापुरी पोरबंदर गुजरात में हुआ था अपने जीवन काल में कई प्रदर्शनीयों में भाग लिया तथा कई एकल प्रदर्शनी भी की लगातार कार्य करते हैं रहे 1986 में इनका निधन हो गया

         यज्ञेश्वर शुक्ल की शैली में लगातार परिवर्तन होते रहे चीन यात्रा के समय चीनी प्रभाव दिखाई पड़ता हैं जो उनके चित्र गोरस की लूट में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है यूरोप यात्रा के समय उनकी शैली पर यूरोपीय प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है उन्होंने अपने चित्रों के लिए मॉडलों का प्रयोग किया तथा कोलाज पद्धति का भी सहारा लिया इस रूप में इनका  वधू नामक चित्र अत्यधिक प्रसिद्ध हुआ परंतु वाई के शुक्ला अपनी शैली में सदैव भारतीय लावर्ण्य और रेखा की मधुरता को बचाए रखा यह प्रमुख रूप से ग्राफिक्स कलाकार थे परंतु आधुनिक ग्राफिक्स कलाकारों की भांति जटिलता पर विशेष कार्य नहीं करते थे

विषय

Y k Shukla के भारतीय ग्रामीण दृश्य चित्रण, श्रृंगार, झूला, तीज, त्यौहार एवं पौराणिक ग्रंथों पर आधारित चित्रण करना उनका प्रिय विषय रहा है विषय में मुख्य पात्र की स्टडी के लिए मॉडल का अक्सर प्रयोग किया करते थे परंतु राजस्थानी शैली का स्पष्ट प्रभाव भी दिखाई पड़ता है जो अलंकारिक रुप में चित्रित है रंग योजना और संयोजन का एक सुमधुर सहयोग दिखाई पड़ता है जो उनके आरंभिक काल से लगाकर अंतिम काल के चित्रों में भी एक समान रूप से विद्यमान रहता है भारतीय कला की विशेषता अंकारिकता वाई के शुक्ल की कला में विद्यमान थी जो चित्रकला और ग्राफिक्स कला दोनों में समान रूप से दिखाई पड़ती है

चित्र

गोरस की लूट,  वधू, जयपुर की एक गली, ग्रामीण दृश्य, रात्रि में वेनिस, onsite, रंगीन खिड़कियां 1962,  खजुराहो पेन और स्याही 1967, ग्रामीण फंतासी लिनो, प्राचीन कविता Aankhen, मयूरी बाला रंगीन कास्ट

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