अवनींद्र नाथ ठाकुर
अवनींद्र नाथ ठाकुर
स्वं व्यक्तिचित्र |
भारतीय आधुनिक चित्रकला को एक निश्चित दिशा देने में अवनींद्र नाथ ठाकुर का महत्वपूर्ण योगदान है अवनींद्र नाथ ठाकुर का जन्म 1871 में जोड़ासाँको पश्चिम बंगाल में हुआ इनका परिवार सांस्कृतिक एवं कलात्मक दृश्य दृष्टि से उन्नत था यही कारण था बचपन से इन्हें कला में विशेष रूचि थी अवनींद्र नाथ ठाकुर के घर बड़े-बड़े देश और विदेश के विद्वानों को आना जाना होता था जिनका प्रभाव बालक अवनींद्र नाथ पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पड़ा
- जन्म 27 अगस्त 1871 जोड़ासांको पश्चिम बंगाल
- मृत्यु 05 दिसम्बर 1951 कलकत्ता
- अध्यापन Government College art and craft Kolkata
अवनींद्र नाथ ठाकुर आरम्भिक शिक्षा संस्कृत कालेज में हुई जहां पर इनके मन में प्राचीन संस्कृति एवं कला के विषय में जिज्ञासा उत्पन्न हुई जिसे प्रेरित होकर उन्होंने साहित्य, संगीत, चित्रकला का अभ्यास करना आरंभ कर दिया तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार अंग्रेजों द्वारा भारती कला को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को देखकर आपके मन में घोर निराशा व्याप्त हो जाती
अवनींद्र नाथ ठाकुर की शैली का विकाश
ई बी हैवेल भारतीय कला के बहुत बड़े पोषक थे जिन्होंने सर्वप्रथम अंग्रेजो के द्वारा भारतीय कला पर किए जा रहे अन्याय को विश्व के सम्मुख रखा और बताया किस प्रकार से भारतीय कला विश्व की कलाओं से श्रेष्ठ है उन्होंने लिखा भारतीय कला व्यक्ति के अंतर्मन की कला है जबकि यूरोपी कला केवल सांसारिक घनाओं तक ही सीमित है अवनींद्र नाथ ठाकुर ने इस दुखद संयोग को समझा और भारतीयों की सोई हुई अंतरात्मा को जगाने के लिए निकल पड़े
1902 में जापान के प्रसिद्ध कलाविद तथा दार्शनिक ओकाकुरा भारत आए जो पश्चिम की कला के घोर विरोधी तथा पूर्वी कला के घोर समर्थक थे अवनींद्र नाथ ठाकुर पर उनके विचारों का विशेष प्रभाव पड़ा ओकाकुरा की 1903 में पुस्तक Ideal of the East प्रकाशित हुई
अवनींद्र नाथ ठाकुर जापानी चित्रकार याकोहामा ताइक्वान और हिशिदा से जापानी चित्रण की तकनीक को सीखा भारतमाता चित्र जापानी पद्धति में बनाया गया श्रेष्ठ चित्र माना जाता है
अवनींद्र नाथ ठाकुर ने मुगल, अजंता, राजस्थानी, पहाड़ी शैली तथा जापान, चीन, इंडोनेशिय की कला का अध्ययन किया तथा एक नवीन शैली को जन्म दिया जो वास शैली के नाम से जानी गई यह शैली भारतीय, जापान, चीन शैली का मिश्रित रूप थी परंतु इस शैली में काम करने वाले कलाकारों का विषय भारतीय परंपराओं से ही प्रभावित था
अवनींद्र नाथ ठाकुर के चित्र
चित्र श्रृंखला
अवनींद्र नाथ टैगोर शिक्षक के रूप में
अवनींद्र नाथ टैगोर का शिक्षक के रूप में महत्वपूर्ण योगदान रहा है इनके द्वारा प्रशिक्षित कलाकार भारत के विभिन्न भागों में स्थापित कला विद्यालयों में कला अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए जिन्होंने वाश शैली का पूरे देश में प्रसार किया अवनींद्र नाथ टैगोर ने कभी भी अपने शिष्यों पर अपनी शैली और विचारों को नहीं थोपा यही कारण था उनके शिष्यों पर उनका प्रभाव होते हुए भी सभी ने अपनी अपनी अलग विशेषताओं युक्त शैली का विकास किया
अवनी बाबू 1898 से 1905 ईसवी तक कोलकाता कला विद्यालय के उप प्रधानाचार्य तथा 1905 से 1915 तक प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत रहे
अवनींद्र नाथ टैगोर के प्रमुख शिष्य
भारतीय आधुनिक चित्रकला के विकाश में योगदान
अवनींद्न नाथ ने भारतीय चित्रकला की पुनर्स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा भारतीयों की सोई हुई आत्मा को पुनः जगाया अपनी प्रतिभा के बल पर भारतीय कला की विशेषताओं से लोगों को अवगत कराया तथा उन्हें भारतीय कला की महानता की अनुभूति संसार को कराई
E v हैवेल की प्रेरणा से अवनींद्रनाथ भारतीय चित्रकला के मर्म को सुनना प्रारंभ किया और मुगल शैली का विस्तृत अध्ययन किया और अवनींद्रनाथ किस शैली में भावुकता तथा भारतीयता प्रमुख भाव रहे हैं आनन्द कुमार स्वामी ने अवनींद्रनाथ चित्रों की आलोचना करते हुए लिखा है इनकी रंग योजना इतनी धुंधली है कि चित्र का विषय तक समझने में बड़ी कठिनाई होती है
अवनींद्रनाथ के चित्रों में भावुकता को प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के कलाकारों ने सिरे से खारिज कर दिया आगे चलकर आने वाले कलाकारों ने उन्हें भुला ही दिया चित्रों को बिना देखे ही अब वह प्रसांगिक माने जाने लगे के जी सुब्रमण्यम ने ललित कला अकादमी के भारतीय कला के 23 साल प्रदर्शनी में आधुनिक कला के पूर्वर्ती के रूप में अवनींद्र नाथ का नाम गिनाना भी उचित नहीं समझा राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में गीता कपूर ने अवनी नाथ के मूल चित्र की एक प्रदर्शनी आयोजित की जिसे देखकर कृष्ण खन्ना ने लिखा हम लोगों ने अवनी नाथ जैसे बड़े कलाकार के काम को कभी नहीं देखा बिना देखे ही हम उसके खिलाफ हो गए थे जया अप्पसामी ने अवनींद्र नाथ की कल्पना और भावनाओं से प्रभावित होकर उन्हें व्हिसलर से श्रेष्ठ तथा रंगो एवं आकाशी प्रभाव को टर्नर से उत्तम माना है प्रदोष दासगुप्ता ने विलियम ब्लेक के समान आदर्श विचारक कलाकार घोषित किया है
अवनींद्रनाथ ठाकुर ने एक ऐसी शैली का विकास किया जिसमें भारतीयता के गुण होने के साथ-साथ अन्य देशों की विशेषताओं को भी सम्मिलित किया गया था जो तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार शायद सत्य भी रही होंगी वह सदैव एक प्रयोगवादी कलाकार के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया, प्रारंभ में यूरोपीय शैली फिर जापानी, चीनी, मणिकुट्टीम में कार्य किया और जीवन के अंतिम समय में लकड़ी के खिलौने निर्मित किए अधिकांश कार्य छोटे आकार के चित्रों के रूप में ही प्राप्त होता है
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