Renaissance of Indian art
1887 की क्रांति के बाद शासन सत्ता की बागडोर निकलकर सीधे इंग्लैंड के शासन के अधीन आ गई यहीं से अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति एवं कला को निम्न दर्शाने के लिए विविध प्रकार के भ्रमात्मक प्रचार करने लगे भारतीय कला को निम्न दर्शाने के लिए उपेक्षा के दृष्टिकोण को लगातार बनाए रखा तथा हर संभव प्रयास किया कि भारतीयों के मन में यह विचार बैठ जाए कि उनकी अपनी कोई संस्कृति सभ्यता नहीं है इंग्लैंडवासी जो उन्हें सिखा रहे हैं
लार्ड मैकाले ने लिखा पूरे भारत का साहित्य एक ब्रिटिश अलमारी में रखी रद्दी के बराबर है ठीक इसी समय हड़प्पा सभ्यता और प्रागैतिहासिक काल के चित्रों की खोज ने हमारी सभ्यता और कला की प्राचीनता मानव इतिहास के प्रारंभ तक ले आती है सोई हुई भारतीयों की आत्मा को जगा दिया और अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार के चक्र को समझा और अपने देशवासियों को भी प्रेरित किया यहीं से स्वदेशी की भावना प्रबल रूप से जागृत होने लगती है
पुनर्जागरण काल का प्रभाव राजनीतिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों के साथ-साथ कलात्मक वातावरण पर भी पड़ा अवनीन्द्र के नेतृत्व में भारतीय कलाकारों ने पुनर्जागरण आंदोलन को आगे बढ़ाया भारतीय की आलोचना करते हुए अंग्रेज अधिकारी बर्डवुड ने लिखा उबला हुआ चर्बी से बना पकवान भी आत्मा की उत्कट निर्मलता तथा स्थिरता के प्रतीक का काम दे सकता है
E V Haiwel मद्रास कला विद्यालय से कोलकाता कला विद्यालय आए आकर उन्होंने अंग्रेजों द्वारा भारतीय कला को लेकर किए जा रहे सौतेले व्यवहार को देखा जिससे वह अत्यधिक आहत हुए इन्होंने भारतीय कला को हर प्रकार से श्रेष्ठ माना तथा भारतीय चित्रकला की विशेषताओं को बताते हुए कहा यूरोपी कला तो केवल सांसारिक वस्तुओं का ज्ञान कराती है पर भारतीय कला सर्वव्यापी अमर तथा अपार है
ई वी हैवेल के अथक प्रयासों से विदेशी विद्वानों का भी भारतीय कला के प्रति सोच बदली और उनके दृष्टिकोण में कुछ नरमी आयी ई वी हैवेल तत्कालीन लार्ड कर्जन से आज्ञा लेकर यूरोपीय शैली में बने चित्रों को बेचकर भारतीय लघु चित्र शैली तथा अजंता शैली की प्रतिलिपिया कला विद्यालय की कला दीर्घा में लगाई ई वी हैवेल बंगाल की लोक पट चित्रकला के साथ-साथ भारतीय कला पर आइडियल आफ इंडियन आर्ट, इंडियन पेंटिंग एंड स्कल्पचर, दी बंगाल पट, अजंता फ्रास्कोज जैसी पुस्तके निकाली
स्टेला क्रामरिश, एन सी मेहता, आर एम रावल, कॉल खंडलावाला तथा आनन्द कुमार स्वामी ने भारतीय कलाओं की विशेषताओं से दुनिया को अवगत कराया इनके दूरदर्शी दृष्टिकोण ने भारतीय कलाओं को विश्व में स्वीकार्यता दिलाई
ओ सी गांगोली ने रूपम पत्रिका का संपादन किया जिसके माध्यम से भारतीय कला पर कुछ दिलचस्प टिप्पणियां भारतीय कला की वास्तविक स्वरूप को संसार के सम्मुख प्रदर्शित किया तथा थियोसोफिकल सोसायटी में जेम्स एच कजिन की सहायता से व्याख्यान मालाओं और प्रदर्शनों का भी आयोजन किया
1907 में इंडियन सोसायटी आफ ओरिएंटल आर्ट की स्थापना की गई जिसके सभापति लॉर्ड किर्चनर, जान वुडराफ, गगनेंद्रनाथ, अवनींद्र, समरेंद्र ठाकुर, जैमिनी प्रकाश, सुरेंद्र ठाकुर, समरेंद्रनाथ ठाकुर आदि के सदस्य थे तत्कालीन बंगाल के गवर्नर सर कारमाईकेल तथा लॉर्ड रोनाल्डसे ने पुनरुत्थान के इस आंदोलन को हर प्रकार से प्रोत्साहित किया
जापान के प्रसिद्ध कलवेत्ता और दार्शनिक विद्वान ओकाकुरा 1902 में भारत आए ओकाकुरा से उन्हीं अवनींद्र नाथ टैगोर अत्यधिक प्रभावित हुई है ओकाकुरा पूर्वी देशों की कलाओं के प्रबल समर्थक तथा पश्चिमी देशों की कलाओं के मुखर विरोधी थे 1903 में आइडियल ऑफ द ईस्ट नामक इनकी पुस्तक प्रकाशित हुई ओकाकुरा ने अपने विचारों से भारतीय पुनर्जागरण काल के इस आंदोलन में प्राण फूंक दिए अवनींद्र नाथ ने 2 वर्षों तक याकोहामा ताइक्वान तथा हिशिदा नामक दो जापानी कलाकारों से जापानी कला की बारीकियां सीखी अवनींद्र नाथ टैगोर ने चीन, जापान, भारतीय आदि शैलियों के समन्वय से एक नवीन शैली को जन्म दिया जो वास शैली या बंगाल शैली के नाम से जानी जाएगी इस शैली को पुर्नउत्थान शैली या पुनर्जागरण नाम से पुकारना अधिक उचित होगा
चित्रकला के पुर्नउत्थान शैली या पुनर्जागरण के प्रवर्तक अवनींद्र नाथ ठाकुर थे तथा इसमें असित कुमार हल्दार, नंदलाल बसु इनके प्रमुख सहायक रहे यह कला आन्दोलन बंगाल से प्राम्भ होकर पुरे देश में फ़ैल गया
इस प्रकार से हम कह सकते हैं पुनरुत्थान काल का यह आंदोलन बंगाल में भारतीय चित्रकला के लिए एक नवीन सवेरा सिद्ध हुआ जो धीरे-धीरे शिखर पर पहुंचकर संपूर्ण भारत को अपने प्रकाश से प्रकाशित करता रहा इस कल आंदोलन ने भारतीय कलाकारों में अपने अतीत के गौरव से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित किया तथा नवीन वैश्विक ज्ञान को भी अपने सृजन में सम्मलित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया इसी आधार पर आगे चलकर भारतीय आधुनिक चित्रकला का विकास हुआ
पुनर्जागरण काल के प्रमुख चित्रकार
अवनींद्र नाथ ठाकुर, असित कुमार हालदार, नंदलाल बसु, शैलेंद्र डे, मजूमदार आदि
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