चालुक्य कालीन चित्रकला, मूर्तिकला और स्थापत्य कला
चालुक्य शासकों ने बागलकोट के आसपास बादामी, एहोल और pattadakal आदि स्थानों पर 550-750 के मध्य दक्षिण भारत में मंदिरों का निर्माण किया जो अब कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले में मालप्रभा नदी के किनारे स्थित है बादामी के चालुक्य के अतरिक्त कल्याणी और बेंगी के चालुक्य शासकों ने भी दक्षिण भारत पर राज्य किया इस प्रकार चालुक्यों का शासन छठी शताब्दी से शुरू होकर 13वी तक चला चालुक्यों द्वारा किए गए निमार्ण कार्य निम्न प्रकार है
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nataraj badami cave 1 |
बादामी की गुफाएं
बादामी गुफा मंदिर कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले में स्थित है जिन्हें प्राचीन समय में वातापी नाम से भी पुकारा जाता था बादामी गुफा का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से निर्मित चट्टानों से हुआ है बादामी केव में हिंदू, जैन धर्म से संबंधित चित्र एवं मूर्तियां प्राप्त होती हैं जो चालुक्य राजवंश की अमूल्य निधि हैं
बादामी गुफाओं की खोज
बादामी के गुफा मंदिरों की खोज प्रसिद्ध कलाविद स्टेला क्रामरिश Stella Kramarisch ने की इसे पहले बर्गीज महोदय ने इन गुफा चित्रों के विषय में जानकारी दी थी स्टेला क्रामरिश बादामी गुफा चित्रों के अध्ययन के पश्चात यहां का विषय भगवान शिव से संबंधित माना था तथा शिव विवाह को सावधिक महत्वपूर्ण दृश्य बताया था श्री कॉल खंडलावाला ने 1938 ईस्वी में प्रकाशित अपनी पुस्तक Indian sculpture and painting में बादामी की रंगीन प्रतियां प्रकाशित की
Badami gufa ka samay
बादामी की गुफा संख्या 3 से एक अभिलेख प्राप्त हुआ है जो चालुक्य राजा मंगलेश के बारहवें वर्ष का है मंगलेश का समय 578 से 589 ईसवी तक माना जाता है इस अभिलेख ने बादामी के विषय में महत्वपूर्ण सूचना मिलती है इस लेख में बताया गया है कि तीसरी गुफा में मुख्य मंडप में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की गई चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय समय तक इन गुफाओं का निर्माण चलता रहा
बादामी गुफा की प्रतिलिपियां
बादामी गुफा के चित्रों की प्रतिलिपियां प्रसिद्ध चित्रकार जे एन अहिवासी तथा उनके सहायकों द्वारा तैयार की गई यह प्रतिलिपियां ललित कला अकादमी के निमंत्रण पर बनाई गई जो इस समय राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में प्रदर्शित है इन प्रतिलिपिओं का निर्माण कॉल खंडलावाला तथा के के हैब्बर की देखरेख में किया गया
बादामी गुफा के विषयवस्तु
बादामी गुफा अपनी मूर्तिशिल्प एवं चित्रों के लिए प्रसिद्ध है इस गुफा में हिंदू और जैन धर्म से संबंधित विषयों पर चित्र एवं मूर्तियां निर्मित की गई हैं संख्या गुफा संख्या 1, 2 एवं 3 हिंदू धर्म से संबंधित हैं जबकि चौथी गुफा जैन धर्म से संबंधित है
नोट
ब्राह्मण या हिन्दू धर्म से संबंधित प्रथम साक्ष्य बादामी की गुफाओं से ही प्राप्त होते हैं
बादामी गुफा में अंकित भित्ति चित्र
- शिव विवाह यहां का सबसे प्रसिद्ध चित्र है
- विरहिनी का चित्र भाव की दृष्टि से प्रसिद्ध है
- इंद्रसभा में गायन वादन का दृश्य
- कीर्ति वर्मा परिचायकओं के साथ
- विद्याधरों के युगल बादलों में उड़ते हुए
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vaman badami cave 3 |
बादामी गुफा का मूर्तिशिल्प
गुफा संख्या 1
यह गुफा भगवान शिव को समर्पित है बादामी गुफा में नटराज मुद्रा में भगवान शिव की मूर्ति उत्कीर्ण की गई है जो 18 भुजाओं से युक्त है इसकी ऊंचाई 5 फीट है साथ में भगवान गणेश और नंदी भी अंकित किए गए हैं तथा महिषासुर का वध करने वाली माता दुर्गा भी बनाई गई हैं माता को महिषासुर मर्दिनी नाम से भी जाना जाता है
द्वार के बाहर द्वारपाल अंकित है दीवार के अंत में अर्धनारीश्वर की मूर्ति है जो भगवान शिव और पार्वती का मिलाजुला स्वरूप है इस गुफा के अंदर शिव गणेश कार्तिकेय तथा छत में नागराज का सुंदर चित्र बनाया गया है
विद्याधर, मिथुन , यक्ष एवं अप्सरा अंकन किया गया है
गुफा संख्या 2
यह गुफा भगवान विष्णु को समर्पित है यहां से त्रिविक्रम या तीन पद में संपूर्ण ब्रह्मांड को नापने की कथा को अंकित किया गया है जो भगवान विष्णु के वामन अवतार को प्रदर्शित करती है
वराह अवतार भगवान विष्णु का पृथ्वी को रसातल से निकालने के लिए वराह अवतार धारण किया था यह मूर्ति इसी पौराणिक कथा को दर्शाती है
इस गुफा मंदिर के अंदर समुद्र मंथन, गजलक्ष्मी स्वास्तिक तथा छत पर अनंत नारायण, शिव, विष्णु एवं अष्टदिगपाल आदि मूर्ति शिल्प निर्मित है
गुफा संख्या 3
इस गुफा का निर्माण चालुक्य शासक मंगलेश ने 578 में कराया था इस गुफा में भी खुला बरामदा स्तभयुक्त मंडप तथा देव स्थान था बादामी की गुफाओं में यह गुफा सबसे बड़ी सबसे अधिक अलंकृत तथा अत्यधिक प्रभावशाली है इस गुफा की वराह प्रतिमा के पास से संस्कृत में उत्कीर्ण अभिलेख प्राप्त हुआ है जिसमें इस गुफा के निर्माण काल उद्देश्य तथा मंगलेश द्वारा लांजीस्वर ग्राम दान में दिए जाने का उल्लेख है
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varaha avatar badami cave 3
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प्रवेश द्वार के बाई और
अष्टभुजी विष्णु, शेषनाग पर बैठे विष्णु, वराह तथा दाएं भाग में हरिहर(अधा भाग शिव तथा आधा भाग विष्णु का) नरसिंह त्रिविक्रम या वामन अवतार की विशाल प्रतिमा उत्कीर्ण हैं
समुद्र मंथन, कृष्ण लीला, पारिजात हरण जैसे महाभारत एवं पौराणिक आख्यान के दृश्य उत्कीर्ण किए गए हैं बरामदे की छत के गोल फलकों पर विष्णु, शिव, इंद्र, वरुण, ब्रह्मा और यम की मूर्तियां बनाई गई हैं बरामदे के सामने वाले स्तंभ पर दैवीय मिथुन युग्म तथा शिव पार्वती, काम रति, नाग नागिनी तथा वृक्ष के नीचे विभिन्न मुद्राओं में खड़ी नायिकाओं का अंकन है सभा मंडप की छत पर ब्रह्मा, बरामदे के छज्जे पर नेलाबल्के शिल्पी द्वारा विष्णु के वाहन गरुड़ की प्रतिमा बनाई गई है इस गुफा में कोली मांची, सिंगी मांची, अजु आचारसिद्धि आदि शिल्पीओं के नाम उत्कीर्ण हैं
इस गुफा में गरुड़ प्रतिमा के पास दांपत्य राजा नृत्य करते हुए चित्रित किए गए हैं गर्भगृह में स्थित महाविष्णु की प्रतिमा अब विद्यमान नहीं है
गुफा संख्या 4
बादामी के गुफा मंदिरों में यह सबसे छोटी गुफा है इस गुफा के विषयों का संबंध जैन धर्म से है तपस्या करते हुए पार्श्वनाथ को अपने शत्रु कामत पर विजय प्राप्त करते हुए उत्कीर्ण किया गया है तथा बरामदे में गोमतेश्वर बाहुबली की प्रतिमा बनाई गई प्रभामंडल से युक्त एक प्रतिमा प्राप्त हुई है जो संभवत महावीर की है प्रवेश द्वार के दाहिने तरफ 1 तीर्थंकर के पास में जक्कवे नामक स्त्री की एक छोटी प्रतिमा है जो जैन पंथ की एक महिला भक्त थी इस गुफा के एक खंड पर कोलीमंची नामक शिल्पी का नाम उत्कीर्ण है
बादामी के प्रमुख मूर्तिकार
Kolimanchi, Singimanchi, Aju Acharasiddhi
Aihole Temple
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Ladh Khan Temple aihole
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पौराणिक कथाओं से रहा है माना जाता है
मलप्रभा नदी के तट पर के के पास
मेगुती पहाड़ियों के ऊपर
भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम के निशान विद्यमान है मेगुति पहाड़ियों से मानव बस्तियों के साक्ष्य भी प्राप्त हुए है
ऐहोल का संबंध मुख्य रूप से हिंदू धार्मिक वास्तुकला से माना जाता है चालुक्य राजवंश ने छठी से आठवीं शताब्दी के मध्य एवं ऐहोल को अपनी राजधानी बनाया मलप्रभा नदी के किनारे लगभग 125 मंदिर हैं जो 22 समूहों में विभाजित हैं इनमें से अधिकांश मंदिर छठी से आठवीं शताब्दी के बीच में बने हैं कुछ मंदिर इससे भी पहले के हैं प्रमुख मन्दिर इस प्रकार है
दुर्गा मंदिर - नागर शैली
यह मंदिर ऊंचे अधिष्ठान पर निर्मित किया गया है खंभों पर इस मंदिर का भार केंद्रित है गर्भगृह अंतराल मंदिर के प्रमुख अंग है इस का शिखर रेखा नागर प्रकार का है यह मंदिर बुद्ध चैत्य योजना पर आधारित है इस मंदिर को स्थानीय भाषा में Durgadagudi से जाना जाता है जिसका अर्थ है किले के पास का मंदिर यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी के अंत या आठवीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ होगा
Ladh Khan Temple
लाढ़ खां मंदिर का प्रयोग अनुष्ठान कार्यों के लिए किया जाता होगा मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थापित किया गया है तथा बाहर नदी की प्रतिमा बनाई गई है अंतराल एवं सभामंडप के बाद गर्भगृह को बाद में जोड़ा गया था इस मंदिर में कुल 16 खंभों का प्रयोग किया गया है ऐहोल मंदिरों में यह सबसे प्राचीन मंदिर है इसका निर्माण 450 ईसवी में किया गया इस मंदिर का नाम एक मुस्लिम संत के लाढ़ खां मंदिर पड़ा जो पंचायतन शैली में बना है
Meguti Temple
मेगूती मंदिर का संबंध जैन धर्म से है इस मंदिर में अंतराल, सभामंडप, गर्भगृह आदि बनाए गए हैं meguti मंदिर द्रविड़ शैली के विकास का शुरुआती मंदिर है इस मंदिर का निर्माण 634 ईसवी में चालुक्य नरेश पुकेशिन द्वातिय के दरबारी कवि रविकीर्ति ने कराया था
Ravanphadi cave
हुच्चिमल्ली मंदिर के पास स्थित यह गुफा छठी शताब्दी में निर्मित हुई इस गुफा में महिषासुर मर्दिनी, गणेश, sapta matrikas को उत्कीर्ण किया गया है तथा गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित किया गया है
नोट
Godwa temple, सूर्य नारायण मंदिर आदि एहोल के प्रमुख मंदिर है
Pattadakal temple
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durga temple aihole
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पट्टाडकल ke मदिरों ka निर्माण
पश्चिम चालुक्य शासकों की शाखा का श्रेष्ठ उदाहरण है इन मंदिरों का निर्माण
राजा विक्रमादित्य II (734-745 ई) और उनकी कला प्रेमी पत्नी
लोकमहादेवीलेकीईए, त्रिल्यकमहादेवी तथा कांचीपुरम से आए मूर्तिकारों ने बनाया
विरूपाक्ष मन्दिर - द्रविड़ शैली
इस मंदिर का निर्माण पल्लवों पर चालुक्य राजाओं की विजय के उपलक्ष्य में निर्मित कराया गया था राजा विक्रमादित्य II की पत्नी लोकमहादेवी ने इस मंदिर को बनवाया था यह द्रविड़ शैली में निर्मित मंदिर है लिंगउद्भव, रावणअनुग्रह, अर्धनारीश्वर आदि मूर्तियां यहां से प्राप्त हुई है गर्भगृह, मंडप, अर्द्ध तथा नंदी मण्डप निर्मित किए गए हैं इसकी बनावट पंचायतन प्रकार की है यह ऊंचे अधिष्ठान पर निर्मित किया गया है पट्टाडकल मंदिरों में सबसे बड़ा है
मल्लिकार्जुन मंदिर - द्रविड़ शैली
विरुपाक्ष मंदिर के समीप में यह मंदिर निर्मित किया गया है यह मंदिर अपेक्षाकृत छोटा है इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य II की पत्नी त्रिल्यकमहादेवी ने कराया इसीलिए इसे त्रिलोकेश्वर मंदिर भी कहा जाता है इस मंदिर की छत में पार्वती के साथ गजलक्ष्मी और नटराज की मूर्तियां अंकित की गई है मंदिर के स्तंभों में कृष्ण जन्म से संबंधित दृश्य उत्कीर्ण किए गए हैं तथा महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति ममल्लपुरम में अंकित मूर्तियों की याद दिलाती है
पापनाथ मन्दिर
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य प्रथम ने 655 से 680 के मध्य में कराया था इसमें रामायण और महाभारत से संबंधित कथाओं को उत्कीर्ण किया गया है
नोट
गलगनाथ मन्दिर, जम्बुलिंग मन्दिर, जैन मंदिर आदि प्रमुख हैं
महाकुट के मंदिर
महाकुट के मंदिर नागर शैली निर्मित किए गए है इनमें मंडप, अर्धमंडप तथा गर्भगृह के साथ प्रदक्षिणापथ भी बनाया जाता था मंदिर ऊंचे अधिष्ठानों पर निर्मित किए जाते थे शिखर के ऊपर स्तूपिका या कलश स्थापित किया जाता था महाकुट के मंदिरों का निर्माण वातापी के चालुक्य ने छठी और सातवीं शताब्दी के मध्य में कराया यहां से एक शिलालेख प्राप्त हुआ है जो राजा vijyaditya (696- 733 ad) के समय का है
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विरूपाक्ष मन्दिर |
बादामी के प्रमुख मूर्तिकार
Kolimanchi, Singimanchi, Aju Acharasiddhi
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