पटना कलम या कंपनी शैली का इतिहास
शाहजहां के पश्चात मुगल शासन की बागडोर औरंगजेब के हाथों में आई औरंगजेब ललित कलाओं के प्रति विशेष उत्साहित नहीं रहा यही कारण था मुगल दरबार छोड़कर चित्रकारों की पहली शाखा पहाड़ी शैली के बसोहली, कांगड़ा, गढ़वाल, चंबा, कुल्लू, मंडी तथा दूसरी शाखा मथुरा, फैजाबाद, बनारस एवं पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में जाकर बस गए
बंगाल के नवाब अलीवर्दी खां मुगल दरबार से आए चित्रकारों को मुर्शिदाबाद में राजकीय संरक्षण प्रदान किया वह स्वयं ललित कलाओं के प्रति आकर्षित हुए यहां पर अंग्रेज अधिकारियों व्यापारियों सैनिकों का आना-जाना भी हुआ करता था यहीं से मुगल शैली के चित्रकारों पर यूरोपीय शैली का प्रभाव पड़ना प्रारंभ हो गया था
नवाब अलीवर्दीखां की मृत्यु के पश्चात एक बार फिर चित्रकारों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा अब वह पटना को अपना नया आशियाना बनाने के लिए चल पड़े मिल्ड्रेड आर्चर का मानना है 1770 के लगभग कायस्थ चित्रकार पटना में आकर बस गए
पटना इस समय एक समृद्धि व्यापारिक केंद्र था जहां पर अंग्रेज डच पुर्तगाली व्यापारी तथा जमीदार एवं अंग्रेज सैनिक अपनी रूचि के अनुसार इन चित्रकारों से चित्र चित्रित कराया करते थे पटना में लोधी कटरा, मुगलपुरा, दीवान मोहल्ला, मच्छरहट्टा तथा दानापुर में आकर बस गए पटना शैली का आरंभ 1760 ईस्वी में हुआ
1850 से 1880 के मध्य शिवदयाल हो शिवलाल जी ने अपनी अलग-अलग चित्र चलाएं खोली शिवदयाल लघु चित्र बनाने में हस्त सिद्ध थे इन चित्रशाला में गोपाल लाल, गुरु सहाय लाल, बनीलाल, जय गोविंद लाल, कन्हाई लाल, बहादुर लाल और जमुना प्रसाद आदि उच्चकोटि के चित्रकार निकले, महिला चित्रकारों में दक्षो बीवी तथा सोना कुमारी भी श्रेष्ठ कलमकार हैं
पटना शैली का नामकरण
इस शैली को पटना शैली, कंपनी शैली, जान शैली, फिरका शैली एवं बाजार शैली के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि शैली को अंग्रेज अधिकारियों का अत्यधिक आश्रय मिला इसलिए यह शैली का नाम कंपनी शैली मानना अत्यधिक उपयुक्त होगा परंतु बहुत से विद्वानों का मानना है क्योंकि इस शैली का प्रमुख केंद्र पटना था इसीलिए पटना से ली मानना उपयुक्त है जबकि शैली के चित्र बनारस, नेपाल, मुर्शिदाबाद आदि उसे भी मिले हैं
पटना शैली की खोज
कंपनी शैली की खोज 1943 ईस्वी में पी सी मानक ने की थी
पटना शैली में ब्रश का निर्माण
पटना कलम के कलाकार तूलिका निर्माण के लिए गिलहरी तथा घोड़े के बाल का प्रयोग करते थे इन बालों को पानी में उबालकर नरम बना लेते थे तत्पश्चात पंछियों के पंखों में आवश्यकतानुसार लगाकर उचित मोटाई की तूलिका निर्मित करते थे
पटना कलम के रंग
पटना शैली कंपनी शैली के कलाकार अपने कार्य में अत्यधिक दक्ष थे यहां पर विशेष रूप से प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया गया है जिनमें वृक्ष की छाल फूल तथा धातु का प्रयोग किया गया है वृक्ष की छाल से पीला, हरसिंगार तथा कुसुम के फूल से लाल, नीले पत्थर से नीला, सीप तथा कश्मीरी मिट्टी से सफेद, गेरू से लाल रंग, कोयले तथा काजल से काला रंग बनाया जाता था
कंपनी शैली के प्रमुख चित्रकार
शिवलाल, सेवकराम, फकीरचंद, तुनिलाल, झूमक लाल, हुलास लाल, शिवदयाल, ईश्वरी प्रसाद
पटना कलम के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
चित्रकार मनोहर को पटना शैली का पूर्वज माना जाता है
कोलकाता स्कूल आफ आर्ट तथा भारतीय पुनर्जागरण काल के प्रसिद्ध चित्रकार अवनींद्रनाथ टैगोर ने इस शैली को पुनर्स्थापित करने के लिए ईश्वरी प्रसाद को अपने यहां शिक्षा देने के लिए आमंत्रित किया
ईश्वरी प्रसाद को इस शैली का अंतिम चित्रकार माना जाता है इनका निधन 1949 को हुआ
सेवक राम के चित्र लॉर्ड मिंटो ने खरीदे थे
हुलास लाल को ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने यहां चित्रकार के रूप में नियुक्त किया हुलास लाल ने बांकीपुर में एक लिथो प्रेस की स्थापना भी की
पटना कलम के कलाकार नेपाल से कागज आयात करते थे
19वीं शताब्दी में पटना शैली या कंपनी शैली बनारस में अपने जोरों पर चल रही थी यहां के कला प्रेमी राजा ईश्वरी नारायण सिंह ने चित्रकारों का संरक्षण दिया इनके दरबार में प्रसिद्ध चित्रकार डल्लू लाल, लालचंद एवं गोपाल चंद्र कार्य कर रहे थे
चित्र को चमकाने के लिए घीया पत्थर से घिसा जाता था चित्रकार चित्रों में ड्राइंग ग्रीष्म ऋतु में बनाते थे तथा ड्राइंग करने के पश्चात बकरी के दूध से ऊपर चित्र के ऊपर लेप लगाया जाता था शीत ऋतु में रंग भरे जाते थे
पटना कलम के विषय
पटना शैली के चित्रकारों ने जन सामान्य जीवन को चित्रित किया है जिनमें लोहार, नाई, भिस्ती, सब्जी बेचने वाला, रिक्शा चलाने वाला, काम करने वाले, हुक्का पीते हुए, दर्जी
नोट
इतिहास में यह पहली चित्र शैली थी जिसमें राजाओं हरम तथा संभ्रांत व्यक्तियों को छोड़कर जनसामान्य को चित्रित किया गया है इसीलिए इस शैली को जन सामान्य की शैली नाम से भी जाना जाता है
पटना कलम की विशेषताएं
इस शैली के अधिकार क्षेत्र डेढ़ चश्म के बने हैं
यह शैली मुगल, पर्शियन तथा ब्रिटानिया शैली का मिश्रित रूप है
पटना कलम में वैज्ञानिक परिवेश के आधार पर दृश्य चित्र बनाए गए हैं
पटना कलम में जल रंग पद्धति द्वारा कागज पर अधिकांश चित्र बनाए गए हैं
आभूषणों और वस्तुओं की बनावट में मुगल शैली का स्पष्ट रूप से प्रकाश दिखाई देता है
कंपनी शैली के प्रमुख क्षेत्रों में सेवक राम द्वारा निर्मित पटनिया इक्का, शिवलाल द्वारा निर्मित मुसलमानी विवाह, गोपाल लाल का होली, हुलास लाल का जुआरियों का अड्डा, महिलाओं की मधुशाला, महादेव का रागिनी गंधारी एवं ईश्वरी प्रसाद का भारत माता, संसार में शिव, पर्दानशी आदि
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