गुप्त काल की वास्तु कला
गुप्त काल को प्राचीन भारत या हिंदू संस्कृति का स्वर्ण युग अथवा क्लासिक युग के नाम से जाना जाता है इस समय सामाजिक आर्थिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से समाज प्रगति पथ पर आगे बढ़ा तथा गुप्तकालीन शक्तिशाली राजाओं ने राजनीतिक स्थिरता प्रदान की इसी के फलस्वरूप अजंता जैसी श्रेष्ठ चित्र शैली का जन्म हुआ जो भारत की अमूल्य धरोहर है
गुप्त काल में मंदिर निर्माण की परंपरा का प्रारंभ हुआ जो आगे चलकर और विकसित होकर समृद्धि हुई कला विद पार्टी ब्राउन ने गुप्त काल की कला की दो विशेषताएं बताई हैं
वैदिक काल में मंदिर खुले प्रांगण में स्थित होते थे जहां पर एक देव मूर्ति स्थापित कर लोग पूजा अर्चना करते थे गुप्त काल में सपाट छत, मंडप तथा जगती से युक्त मंदिरों का निर्माण किया गया मंदिरों के निर्माण में ईद पत्थर आदि सहायक सामग्री का प्रयोग किया गया
प्राचीन मंदिर खुले प्रांगण के नीचे बनाए जाते थे जिन्हें यान या चौरण कहा जाता था इनके ऊपर देव प्रतीक रखकर पूजा की सामग्री अर्पित की जाती थी मंदिर निर्माण के दूसरे चरण में मंदिर के चारों ओर बाड (Railing) बनाने की प्रथा प्रारंभ हुई इसे प्राकार कहा गया मंदिर निर्माण का तीसरा चरण गुप्त काल से प्रारंभ हुआ जिसका प्राचीनतम और आरंभिक उदाहरण सांची का मंदिर तथा इसका पूर्ण विकसित रूप देवगढ़ के दशावतार मंदिर में दिखाई पड़ता है
गुप्तकालीन मंदिरों की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं
1 इस समय के मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बने थे जिन पर चढ़ने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया था2 प्रारंभिक मंदिरों की छतें चपटी होती थी किंतु आगे चलकर शिखरों का विकास हुआ3 मंदिरों का सबसे महत्वपूर्ण का गर्भगृह था जहां पर देव मूर्ति स्थापित की जाती थी गर्भगृह तीन दीवारों से गिरा होता था तथा एक प्रवेश द्वार बनाया जाता था4 आरंभिक समय में गर्भगृह सादा होता था परंतु आगे चलकर इसमें अलंकरण कार्य भी किया जाने लगा5 गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ बनाए जाने लगा था6 मंदिर में प्रवेश करते समय गर्भगृह की चौखट पर मकर वाहिनी गंगा और कूर्म वाहिनी यमुना की आकृतियां बनाई जाती थी साथ ही मिथुन स्वास्तिक श्री मंगल कलश मांगलिक चिन्ह द्वारपाल मिथुन आदि का अंकन किया जाता था7 आरंभिक समय में मंदिर के गर्भ गृह के सामने एक स्तंभ युक्त मंडप बनाया गया आगे चलकर यह चारों तरफ बनाए जाने लगा8 गुप्त काल के अधिकांश मंदिर पाषाण निर्मित हैं केवल भीतरगांव मंदिर तथा सिरपुर के मंदिर ईटों के बनाए गए हैं
गुप्तकालीन प्रमुख मंदिर
सांची का मंदिर
एरण का विष्णु मंदिर
नचना कुठार का मंदिर
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में अजय गढ़ के समीप नचना कुठार का मंदिर स्थित है इसका निर्माण वर्गाकार चबूतरे पर किया गया जो 10.50 मीटर लंबा है गर्भगृह की भुजा 4.50 मीटर है गर्भगृह के चारों ओर बरामदा निर्मित है सामने की तरफ स्तंभित मंडप बनाया गया है इस मंदिर की छत सपाट तथा गर्भगृह की दीवारों पर अलंकर किया गया है यहां स्वस्तिक शंख पदम उड़ते हुए हंस आदि का चित्रण मिलता है दीवारों के आलों में मिथुन अंकित किए गए थे
भूमरा का शिव मंदिर
देवगढ़ का दशावतार मंदिर
उत्तर प्रदेश के ललितपुर जनपद में यह मंदिर गुप्त काल की उत्कृष्ट रचना है 1.50 मीटर ऊंचे अधिष्ठान पर स्थित इस मंदिर की ऊंचाई 12 मीटर है मंदिर का शिखर पिरामिड के आकार का बना है यहां पर चतुर्मुखी भगवान विष्णु, गजेंद्र मोक्ष, राम लक्ष्मण वन को जाते हुए, सुग्रीव युद्ध, सेतू निर्माण, हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाना आदि दृश्य अंकित किए गए मंदिर में शेषशायी विष्णु की सजीव प्रतिमा रखी गई है प्रवेश द्वार पर गंगा और यमुना की मूर्तियां बनाई गई हैं इसके साथ ही पौराणिक एवं धार्मिक विषयों से संबंधित मूर्तियों का निर्माण किया गया है
इस मंदिर को खोज करने श्रेय कनिंघम तथा डी आर साहनी को दिया जाता है देवगढ़ के इस मंदिर में असाधारण परिष्कार संपन्नता से युक्त उच्च स्तरीय कारीगरी का प्रदर्शन किया गया है |
अहिच्छत्र का मंदिर
सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर
ही केवल शेष बचा है इस मंदिर को गुप्त काल के अंतिम समय का माना जाता है
Sanchi ka madir kisko samrpit hai sankhya 17 wala
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