नागर शैली की वास्तुकला
नागर शैली मंदिर के अंग
नागर शैली नगर से बना है सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण अथवा अधिक संख्या में होने के कारण इसे नागर की संज्ञा दी गई शिल्पशास्त्र के अनुसार नागर मंदिरों के 8 प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं
नागर शैली के महत्वपूर्ण अंग
1 मूल अथवा आधार - जिस पर संपूर्ण भवन खड़ा किया जाता है2 मसूरक - नीव और दीवारों के बीच का भाग3 जांघ - दीवारों, विशेषता गर्भगृह की दीवारें4 कपोत - carnish5 शिखर - मंदिर शीर्ष भाग अथवा गर्भग्रह का ऊपरी भाग6 ग्रीवा - शिखर का ऊपरी भाग7 वर्तुलाकर अमलाक- शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग8 कलश - शिखर का शीर्ष भाग
नागर शैली के मंदिर वर्गाकार होते थे इनकी बनावट ऊपर की ओर शिखर जैसी होती थी जो तिरछी छोटी रेखाओं के द्वारा अंदर की ओर युक्ति जाती थी तथा शीर्ष पर आमलक सुशोभित होता था जिसके ऊपर कलश होता था कलश के ऊपर देवता को समर्पित चिन्ह लगाया जाता था
इस शैली के मंदिर हिमालय व विंध्याचल पर्वत के मध्य क्षेत्रों में बनाए गए हैं इस शैली में स्थान के अनुसार वास्तु कला में भी परिवर्तन दिखाई पड़ता है पारसी ब्राउन ने नागर शैली को ही उत्तर भारतीय आर्य शैली या आर्यवर्त मंदिर शैली के नाम से उल्लेखित किया है
मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण पवित्र स्थान गर्भगृह को माना जाता है जहां पर जिस देवता को मंदिर समर्पित होता है उस की मूर्ति या प्रतीक चिन्ह रखा जाता था मंदिरों के विकास के साथ-साथ मूर्ति को तीन ओर से दीवारों से घेर कर उसके ऊपर एक शिखर नुमा आकृति बनाई जाती थी गर्भग्रह में ही प्रदक्षिणा पथ बनाए जाने लगा समय के साथ मंदिरों में अन्य अंग जोड़े गए अंतराल, मंडप, महामंडप, अर्द्ध मंडप आदि इस प्रकार के मंदिरों का श्रेष्ठ उदाहरण कंदरिया महादेव मंदिर में दिखाई पड़ता है
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