नागर साहब प्रधानाचार्य नहीं बने लेकिन कला महाविद्यालय को स्वर्णिम काल मे ले जाने मे खास्तगीर साहब के साथ उनका बड़ा योगदान रहा है । इसके लिए कला महाविद्यालय मे बन रहे संग्रहालय का नाम नागर साहब के नाम पर रखा जाए यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी । क्योंकि आज लखनऊ विश्वविद्यालय अपने शताब्दी वर्ष माना रहा है जबकि कला महाविद्यालय 2011 में ही अपने 100 वर्ष पूरे कर लिये है जिसकी स्थापना 1911 में हुई थी ।
साथ ही मदन लाल नागर के सुपुत्र अक्षय नागर ने कला गुरु और अपने पिता प्रो मदन लाल नागर के तमाम अपने बचपन के समय की बातों को साझा की किस प्रकार वे कला सृजन करते थे । उन्होंने बताया की नागर साहब राजस्थानी कला , सूरदास , कबीर दास को लेकर एक शृंखला बनाना चाहते थे । जिसकी वे रेखांकन बना चुके थे लेकिन उसे पूरा नहीं कर सके ।
मदन लाल नागर जी के कला कृतियों पर भी लोगों ने चर्चा की चित्रकार नागर संवेदनाओं व् वातावरण के कलाकार थे, साथ ही मानसिक विश्लेषण के बुद्धिजीवी चित्रकार थे । नगर के चित्रों में पोर्ट्रेट पेंटिंग के बारे में कहा की यह मुझ जैसी लखनवी का चेहरा है जिसमें समाया है इतिहास उसकी गौरव गाथा की कला लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर लखनऊ की तंग गलियों व् ऐतिहासिक इमारतों आदि के प्रतीकात्मक मौलिक संयोजनों के लिए उनकी पहचान को मूल्यांकित किया गया है. नागर में चित्रकार के साथ ही योग्य अध्यापक, लेखक, समीक्षक एवं कला संस्थानों के संगठनात्मक दायित्व के गुण भी समाहित थे. उनका जन्म 5 जून,1923 को लखनऊ के पुराने इलाके चौक में हुआ, उनकी कला शिक्षा, कला एवं शिल्प विद्यालय, लखनऊ से हुई और यही वह 1956 अध्यापक नियुक्त हुए . 1983 ललित कला विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए और 27 अक्टूबर 1984 को यही देहावसान हुआ।
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