खजुराहो के मंदिर समूह
संरक्षण..
1818 में सर्वप्रथम फ्रैंकलीन नामक अंग्रेज शोधकर्ता ने इन्हें बहुत बड़े जंगल में देखा और खंडहरों के रूप में अपने यात्रा में उल्लेखित किया इससे प्प्रेरणा पाकर अंग्रेज सरकार पीसी बर्ट नामक अंग्रेज इंजीनियर को खजुराहो की पूर्ण जानकारी हेतु भेजा उन्होंने 1838 में से देखा और यहां की मूर्तिकला का उल्लेख है खजुराहो मध्य प्रदेश खजुराहो का मंदिर समूह के रूप में उत्तर भारती नागर शैली शीर्ष बिंदु को प्राप्त हुई यह मंदिर समूह छतरपुर कस्बे से 40 किलोमीटर तथा महोबा से किलोमीटर दूर स्थित खजुराहो के विश्वविख्यात मंदिर समूह उपस्थित है
2 पूर्वी मंदिर समूह.. 1हनुमान मंदिर 2 ब्रम्हा मंदिर 3 वामन व खाखरा मठ 4जावरी मंदिर 5 घंटाई मंदिर 6 जैन मंदिर समूह, पाशर्वनाथ, आदिनाथ, शांतिनाथ मंदिर
खजुराहो के मंदिर नागर शैली के सबसे सुंदर तथा विकसित मंदिर हैं इस सहेली की विशेषता यह है कि ऊंची जगहों पर पर्वतों के सदृश्य उत्तरोत्तर उन्नति होते हुए शिखरों से सुसज्जित है
- 1. पश्चिमी समूह चौसठ जोगनी मंदिर 2 ललगुवा मंदिर 3.माँगतेश्वर मंदिर 4 वराह मंदिर 5 लक्षमण मंदिर 6 प्रवेश मंदिर 7 विश्वनाथ मंदिर 8 पार्वती मंदिर 9 चित्रगुप्त मंदिर 10.देवी जगदम्बा मंदिर 11 महादेव मंदिर 12 कंदरिया महादेव मंदिर
- 3. दक्षिणी मंदिर समूह. 1दूल्हादेव मंदिर 2 चतुर्भुज मंदिर
1904 मे भारतीय पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन ले लिय:
- 1. मेरु पर्वत के आकार मे बने चार शिखरों से सुसज्जित मंदिर 5 आंतरिक भागों में विभक्त होने के कारण इन्हें संधार मंदिर कहा जाता है इनमें प्रदछिड़ापथ मंदिर के अंदर ही बना होता है
- 2. रथ आकार में बने मंदिर जो तीन शिखरों सीकर से सुसज्जित होते हैं जो आंतरिक तौर पर चार भागों मे बने होते
- है इनमें प्रदक्षिणापथ मंदिर के बाहर बना होता है इन्हें निरन्धार मंदिर कहते हैं
भौगोलिक स्थिति के अनुसार खजुराहो के मंदिरों को प्रमुखता तीन समूहों में देखा जा सकता है
आकार के रूप में देखने पर खजुराहो में दो प्रकार के मंदिर हैं
1. 1852 से 85 के मध्य कनिंघम ने इन मंदिरों का विस्तृत सर्वेक्षण किया
परंपराओं के अनुसार मंदिर की संख्या 185 बताई जाती है किंतु संपत्ति बताओ और केवल 25 मंदिर ही किसी प्रकार सुरक्षित रह सके
- 1. चौसठ योगिनी मंदिर एक यह मंदिर यह मंदिर लगभग छठवीं शताब्दी का बना हुआ मंदिर है यह सबसे प्राचीन है तो चंदेल राजवंश के अस्तित्व में आने के लगभग 300 वर्ष पूर्व से यहां स्थित है यहां 64 योगिनी यों की पूजा तांत्रिकों द्वारा की जाती थी लावा पत्थर किस इलाके में इनसे लाओ द्वारा बना 5.4 मीटर ऊंचा ऊपर से खुला है
- ललगुंवा मंदिर या पश्चिम भीमुकखी मंदिर है यह ललगुंवा सागर के किनारे भगवान शिव के लिए बनवाया गया था जो चौसठ योगिनी के मंदिर से 64 मीटर पश्चिम में है यह लावा पत्थर से बना है मंदिर के सामने नंदी की सुंदर प्रतिमा है
- मंगतेश्वर मंदिर.. चंदेल राजाओं द्वारा बनवाया गया यह पहला मंदिर है लोकमत के अनुसार निर्माण काल से ही निरंतर इसमें पूजा होती आई है
. ऐसी मान्यता है सर्वप्रथम महाराज हर्षवर्मन ने मरकत मणि नामक मणि की स्थापना की थी जिसे स्वयं भगवान शिव ने युधिष्ठिर को दी थी बालू पत्थर का बना यह मंदिर सिर्फ कार्य की दृष्टि से बहुत ही असाधारण है रचना की दृष्टि से ब्रह्मा मंदिर का ही विशाल रूप है गर्भ गृह में जंघा एवम शिवलिंग की स्थापना है मंदिर की छत वर्गाकार सुंदर तथा विशाल है गर्व की के तीनों ओर अहाते दार झरोखे हैं मंदिर का एक शिखर पिरामिड शैली का है प्रवेश द्वार के ऊपर शिखर पर गड़े मुकुट से शिखर का सौंदर्य बढ़ जाता है
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वराह मंदिर लावा पत्थर की काफी ऊंचाई पर बना हुआ बालू पत्थर का मंदिर आयताकार मंडप के रूप में बना है इसका शिखर पिरामिड शैली से 14 स्तंभों से पर खड़ा है इस मंदिर में भगवान विष्णु की बारा रूप दिखाया गया है गृह एवं एक ही पत्थर की बनी 2 पॉइंट 6 मीटर लंबी इस मूर्ति की विशेषता यह है कि इसके ऊपर छोटी अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं
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इसे शेषनाग को भक्ति भाव में दिखाया गया है तथा इसके ऊपर पृथ्वी को भी दिखाया गया है मंदिर की छत सुंदर कमल फूल की आकृति सुसज्जित है दो तो कोर्ट में बने हुए इस कमल की विशेषता यह है कि यह सहस्त्र पदम का प्रतीक है
लक्ष्मण मंदिर लगभग 930 में बना हुआ भगवान विष्णु का या मंदिर यशोवर्मन नामक राजा ने बनवाया था इसका अन्य नाम लक्ष्मण भ्रमण भी था इसलिए इसे लक्ष्मण मंदिर के नाम से पुकारते हैं पंचायतन शैली में बनाया हुआ मंदिर खजुराहो में प्राप्त सभी मंदिरों में सुरक्षित स्थिति में है एक-दो जनती के अनुसार लक्ष्मण बर्मन ने मथुरा से 16000 संस्कारों को इस मंदिर के निर्माण के लिए बुलाया था जिन्होंने 7 में बना दिया
प्रवेश मंदिर मुक्तेश्वर मंदिर के उत्तर की ओर स्थित यह मंदिर संधार पंचायतन शैली में भगवान विष्णु का मंदिर है जो बैकुंठ का प्रतीक है मंदिर के ठीक सामने भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ का मंदिर है रहा होगा जिसे अब देवी ब्राह्मणी की प्रतिमा है
प्रमुख मंदिरों के प्रवेश द्वार पर भगवान सूर्य की अद्वितीय प्रतिमा है तथा मुनि हाथ में कमल के दो फूल लिए अरोड़ा तथा रोड दिखाया गया है प्रमुख मंदिर को अंदर से पांच भागों में देखा जा सकता है पहला भाग मंडप इसमें 953 ईस्वी का शिलालेख भी मिलता है
पार्वती मंदिर सन 18 सो 80 ईस्वी में चूने से पूर्णता नया निर्मित मंदिर विश्वनाथ मंदिर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित इस पर भी अन्य मंदिरों की भांति तीन लोगों का चित्रण है गर्भगृह में बनी भगवती पार्वती की प्रतिमा है
चित्रगुप्त मंदिर खजुराहो में बने मंदिरों में केवल यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो निरंधार शैली में बना है 11वी शताब्दी के उत्तरार्ध में महाराजा धन्गदेव के पुत्र महाराजा गण्डदेव वर्मन के द्वारा निर्मित करवाया गया था इस बंदे का नाम चित्रगुप्त नामक उप देवता के नाम पर पड़ा
देवी जगदंबा मंदिर निरंधार शैली में बने इस मंदिर का निर्माण खंड देववर्मन ने करवाया था यह माता विष्णु का मंदिर था लेकिन सन 1880 महाराजा छतरपुर द्वारा मनियागढ़ से पार्वती की मूर्ति यहां लाकर स्थापित करने से पार्वती के बाद यह जगदंबा मंदिर कहलाया
महादेव मंदिर कंदरिया महादेव न्यू जगदंबा के बीच में छोटे चबूतरे पर बना भगवान शिव का मंदिर है इसमें चंदेल राजवंश के प्रथम राजा चंद्र वर्णन को सिंह से लड़ते दिखलाया गया है यह चिन्ह अशोक चक्र की तरह चंदेल राजवंश का प्रतिक चिन्ह था
कंदरिया महादेव मंदिर गंडदेव के पुत्र विद्याधर द्वारा 1065 ईसवी के लगभग बनवाया गया शिव मंदिर है यह मध्ययुगीन स्थापत्य एवं शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है इसके बाद से ही यहां स्थापत्य कला का पतन प्रारंभ हो गया था यह मंदिर इस समय का सबसे अधिक विकसित 17 अली का मंदिर है कहते हैं कि जब महाराज विद्याधर दूसरी बार भी मोहब्बत गजनी को परास्त कर भगाने में सफल हुए तब उन्होंने इसे भगवान शिव की कृपा माना और भगवान शिव का विशाल मंदिर में करवाया यह मंदिर 117 फीट ऊंचा इतना ही लंबा व 66 फुट चौड़ा है मंदिर के गर्भ गृह में संगमरमर का बना शिवलिंग है जो अन्य मंदिरों से विशाल है इस मंदिर का प्रवेश द्वार कंदरा या गुफा के द्वार जैसा है इस देश का नाम कंदरिया महादेव अर्थात कंदरा में रहने वाला पड़ा
B.. पुर्वी मंदिर समुह
1 हनुमान की मूर्ति या मूर्ति गांव की ओर जाने वाले रास्ते पर बनी है यही श्रद्धालुओं ने सिंदूर से रंग दिया यह मूर्ति इसलिए उल्लेखनीय है इस पर एक शिलालेख 1922 ईस्वी का है जो खजुराहो से प्राप्त अन्य शिलालेखों से पुराना है
2 बाह्म मंदिर 900 ईसवी लावा व बलुआ पत्थर द्वारा बना है इसके अंदर चरुर्मुखी शिवलिंग है प्रवेश द्वार पर ब्रम्हा, विष्णु, शिव की प्रतिमा है
3 वामन मंदिर निरंधार शैली में बना है
भगवान विष्णु की वामन अवतार में अद्भुत प्रतिमा है पश्चिम की दीवार पर शिव पार्वती के विवाह का दृश्य अंकित है
4 जावरी मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है
गर्भगृह में भगवान विष्णु की खंडित प्रतिमा है जो विष्णु के बैकुंठ रूप को दिखलाती है तथा छोटा होने के कारण यह जो मूर्तियां बानी है वे घनी लगती है इस मंदिर की मुख्य विशेषता है दिक्पालों की आलो में बनी प्रतिमाएं
5 घंटाई मंदिर इस मंदिर की स्तंभों पर सांकलों के द्वारा घंटियां लटकी हुई बनाई गई हैं इस कारण इसका नाम घंटाई मंदिर पड़ा मंदिर के रूप प्रवेश द्वार पर अंकित मूर्तियों एवं अन्य शासन देवियों के कारण इसे जैन मंदिर माना है
जैन मंदिर समूह
पार्श्वनाथ मंदिर 10 वीं शताब्दी में विश्वनाथ मंदिर के समकालीन बनाइए एक संधार मंदिर है मूलत: आदिनाथ की लिए बनाये गए इस मंदिर में पार्श्वनाथ की प्रतिमा है इसका निर्माण पहिल नामक श्रेष्टि ने 950 ईस्वी में करवाया था
पंचरथ शैली में बना यह मंदिर लक्ष्मण मंदिर के सदृश्य है
इस मंदिर पर नायिकाओं की प्रसिद्ध प्रतिमाएं जो आंख में काजल लगाते हुए वह पांव में महावर लगाते हुए दर्शित हैं उत्तर दीवार पर पांव में घुंघरू बांधे हुए नेता की सुंदर प्रतिमा है उत्तर पश्चिम कोने में कामदेव रति की एक प्रतिमा देखनी है कामदेव का चित्रण खजुराहो में यही हुआ है
गर्भ गृह के प्रवेश द्वार पर हिंदू मंदिरों की तरह तीनों लोगों स्वर्ग लोक नृत्य लोग क्यों पताल लोक अंकित किया है स्वर्ग लोक के चित्र में नवग्रहों के साथ जैन तीर्थंकरों को दिखाया गया है
आदिनाथ मंदिर पार्श्वनाथ मंदिर की उत्तर की ओर निरंधार शैली में बना शैली छोटा मंदिर है
इस मंदिर में युगल प्रतिमा या नहीं है मंदिर के आलो में शासन देवियों की प्रतिमाएं सबसे ऊपर के कारण में उड़ती में अफसरों की मूर्तियां नीचे की ओर विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमा है
शांतिनाथ मंदिर गर्भगृह में शांतिनाथ की 4.5 मीटर ऊँची प्रतिमा है जो 11वी शताब्दी में बनी है यहाँ जैन श्रद्धालुओं द्वारा अब भी दैनिक अनुष्ठान व पूजा पाठ होता है
दक्षिणी मंदिर समुह
1 दूल्हादेव मंदिर चंदेल राज्यवंश द्वारा बनवाया गया सबसे नया शिव मंदिर है जिसका निर्माण 1100 -1500 ई. के मध्य हुआ है खंडित अवस्था मे है निरंधार शैली के बना है मंदिर में नृत्य के लिए चबूतरे बने है
गर्भगृह में सहस्त्र मुखी शिवलिंग है प्रतिमाये तीन कतारों में है गंधर्व किन्नरों का बड़ा ही सजीव चित्रण आकाश में उड़ते हुए किया गया है दक्षिणा लो में भगवान शिव का अंधकासुर वध करते हुए ऊपर वालों में पदम पद्मासन में बैठे हुए दिखाया गया है ब्रह्मा दीवारों पर नायिकाओं तथा युगल की विभिन्न विधाओं में दिखाया गया है यहां कुछ मैथुन मूर्तियां भी उसने दर्शनी है
चतुर्भुज मंदिर निरंधार शैली में बना यह मंदिर आकृति की दृष्टि से एक छोटा पश्चिमा भी मुखी मंदिर है यहां लक्ष्मी जी की नरसिंह प्रतिमा व अर्धनारीश्वर रूप में भगवान शिव की प्रतिमा उल्लेखनीय है गर्भगृह में शिव की चार भुजाओं वाली प्रतिमा अभय मुद्रा में 2.7 मीटर ऊंची एक पथ एक ही पत्थर पर बनी है यह प्रतिमा अपने मुख्य मंडल एवं भाव के लिए व शरीर की त्रिभंग स्थिति के लिए विशेष दर्शनीय है
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