गणतंत्र दिवस
तिरंगा |
तिरंगा |
सूरज हर दिन निकलता है पर आज का कुछ खास था खास इसलिए क्योंकि आज के दिन ही हमारे देश का संविधान लागू हुआ था 26 जनवरी के इस पावन पर्व को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं गणतंत्र का अर्थ है प्रजातंत्र लोकतंत्र या जनतंत्र है साधारण शब्दों में हम लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए कह सकते हैं कि देश में जनता का शासन हो या उसके द्वारा निर्वाचित लोग देश को प्रगति पथ पर आगे बढ़ाएं पर यही सबसे महत्वपूर्ण तथ्य भी है जनता किसी गणतंत्र की महत्वपूर्ण कड़ी है देश किस दिशा में जाएगा यह केवल कोई राजनेता नहीं निर्धारित करता बल्कि उस राष्ट्र के आम लोग निर्धारित करते हैं अतः हमें व्यक्तिगत रूप से लगता है कि राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को आत्मचिंतन करना चाहिए क्या हम सब अपने कर्तव्यों का सम्यक निर्वाहन कर पा रहे हैं या नहीं पर इतना सारे देशवासियों को हमेशा बोध रखना चाहिए लोकतंत्र की असली शक्ति आपके पास है जब तक आप उसको बिना किसी राग द्वेष के तटस्थ होकर हाथों में केवल राष्ट्रप्रेम के लिए अपने जनप्रतिनिधियों को चुनेगें तब तक राष्ट्र तीव्रता के साथ प्रगति पथ पर बढ़ेगा अगर आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो किसी नेता या नीतिनियंता पर केवल आरोप-प्रत्यारोप से सुधार नहीं होगा चाहे चुनाव जिसका भी कर लो हमेशा ख्याल रखो लोकतंत्र के मालिक जनता है जब तक मालिक को अपनी परिवार की चिंता नहीं है तो फिर दूसरे से व्यर्थ उम्मीद क्यों करनी
झांकी पश्चिम बंगाल |
आज हम सब का कर्तव्य है कि इस पावन पर्व की बेला पर प्रण ले कि संविधान की मर्यादाओं में रहकर अपना जीवन निर्वहन करूंगा इसका केवल एक ही उद्देश्य होगा राष्ट्र निर्माण जो किसी भी प्रकार से हो सकता है यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि देश के सम्मुख वर्तमान में एक प्रकार का संवैधानिक संकट खड़ा हो गया संविधान बचाने के नाम पर जो कुछ हो रहा है इससे ज्यादा निंदनीय कुछ नहीं है पर हमारे नीति नियंता इस सत्य को मारने के लिए तैयार नहीं है चाहे पक्ष के हो या विपक्ष के कुछ समय पूर्व संसद से पारित कानूनों को लेकर जिस तरह विरोध हो रहा है कहीं से उसे सही नहीं कहा जा सकता है पर केवल लोकतंत्र में विरोध होना चाहिए सरकारों का विरोध और आंदोलन उन्हें निरंकुश होने से रोकते है और लोकतंत्र को और अधिक मजबूत करते है पर आज विरोध के नाम पर जो हो रहा है वह काफी दुखद है इस समय अन्ना के आंदोलन को याद करना जरूरी है जो देश के हर प्रांत में समान रूप से फैला गांव व शहरों में बढ़-चढ़कर लोगों ने हिस्सा लिया देशव्यापी जनसमर्थन के बाद भी आंदोलन में न तो कहीं भी सड़के जाम की गई और न कहीं किसी प्रकार की हिंसा दिखाई दी शायद गांधी के देश में ऐसा ही आंदोलन होना चाहिए जो राष्ट्र को सही दिशा दिखा सकता है पर वर्तमान समय में गांधीजी का नाम केवल वक्तव्य देने तक ही सीमित कर दिया गया है उनको पढ़ने विचारों पर चलने की बात तो आप छोड़ ही दो
भातीय डाक टिकट |
थोड़ी देर के लिए मान भी लें सरकार ने कोई संविधान विरोधी कानून पास किया है तो भी देश की सर्वोच्च न्यायपालिका पर भरोसा रखना चाहिए अगर ऐसा वास्तव में है तो वह उस कानून को अवश्य निरस्त करेगी इसमें कोई दो राय नहीं है देश के नागरिकों को आवाज भी उठानी चाहिए पर वह आवाज सभी देशवासियों की होनी चाहिए जो अभी कुछ साल पहले हुए अन्ना आंदोलन जैसी हो जहां पर हिंसा की कोई जगह न हो किसी नागरिक को कोई कष्ट ना हो यहीं पर देश के विद्वान वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है साथ ही कुछ राजनेताओं की चांदी जो केवल इसलिए इन लोग बीच पहुंचते हैं जिससे जनता की सहानुभूति प्राप्त कर सकें और यह दिखाते हुए अक्सर पाए जाते हैं कि वह जनता के सच्चे हितैषी हैं पर हम सबको बीते हुए समय से भी कुछ सीख लेनी चाहिए कि उन्होंने हम सब के लिए वास्तव में क्या कार्य किए हैं इस नियम के अपवाद कुछ नेता आज भी हो सकते हैं पर नेताओं का एक चरित्र तो जगजाहिर है कि वह वही कार्य करते हैं जिनसे उन्हें चुनाव में लाभ हो
झांकी दिल्ली |
कभी-कभी देश के बुद्धिजीवियों से शिकायत भी होती है कि वह अपने आप को किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से संबंध स्थापित कर लेते हैं ऐसे में वह तटस्थ होकर अपना विचार रख पाएंगे मुझे लगता है संभव नहीं है लोकतंत्र में प्रबुद्ध लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है वह वर्तमान में स्थित किस प्रकार का भविष्य में परिणाम देगी इस प्रकार का अनुमान लगा सकते हैं ऐसा नहीं है सामान्य व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाएगा पर इसके लिए अध्ययन की आवश्यकता तो होती ही है पक्ष और विपक्ष के तर्कों को तथ्यों की कसौटी पर जो सत्यता को परखता था वह आज लुप्त सा हो गया है जिससे समाज में आज क्या उचित अनुचित का बोध कराने वाला कोई नहीं है यही कारण है कि पक्ष विपक्ष में खड़े लोग अपने पक्ष को सही मानते हैं उदाहरण के तौर पर अभी की घटनाओं को देखकर समझा जा सकता है ऐसी स्थिति राष्ट्र के लिए अत्यधिक हानिकारक होती है यहीं पर बौद्धिक वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है यही सही समय है जब सही गलत को तटस्थ रूप से तर्कों के ऊपर रखकर परखा जाता है फिर बिना किसी राग द्वेष के देश के सम्मुख अपने विचारों को रखते हैं सारा देश ऐसे लोगों पर विश्वास भी करता है इतिहास तो यही बताता है कोई विद्वान तब तक इन भावों से मुक्त नहीं हो सकता जब तक स्वयं की प्रसिद्धि की लालसा से अपने आप को मुक्त ना कर ले
लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण अंग जनता होती है इसीलिए इसका शिक्षित एवं स्वस्थ होना महत्वपूर्ण है इसका दायित्व सरकारों का है पर दायित्व वही समझेगा जो पद के योग्य हो अमूमन चुनाव के समय हम सब देशवासी धर्म जातियों के आधार पर विभक्त हो जाते हैं अपने समुदाय के लोगों को ही अपना प्रतिनिधि देखना चाहते हैं यह 100% सत्य भी है और आंकड़े भी यही बताते हैं यहीं महत्वपूर्ण प्रश्न हमारे सम्मुख खड़ा होता है जब हमारा चुनाव निष्पक्ष नहीं है तो फिर चुने हुए प्रतिनिधि के कार्य कैसे निष्पक्ष होंगे आप स्वयं विचार करें इस संदर्भ में कुछ अधिक नहीं कहना चाहता हूं हां पर इतना अवश्य कहूंगा कि इस देश के लोग जितना अधिक योग्य शिक्षित तथा नए दृष्टिकोण वाले व्यक्तियों को चुनकर सरकार चलाने का अवसर देंगे राष्ट्र उतना ही आगे जाएगा देश का जन सामान्य जितना तटस्थ होकर सरकारों को चुनेगा का वह देश उतना ही प्रगतिशील बनेगा और समृद्धि प्राप्त करेगा तथा संविधान उतना ही मजबूत और सशक्त होगा
झांकी दिल्ली |
यह दुर्भाग्य नहीं तो क्या है देश को आजाद हुए इतने वर्षों के बाद भी शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ना कभी चुनाव हुआ और ना ही हमारे राजनेताओं समाजसेवियों एवं धर्म गुरुओं ने यहां तक हम सब ने भी आवाज नहीं उठाई आंदोलन की तो बात आप रहने दीजिए क्योंकि शिक्षा समानता का संचार करती है सभी को तर्क वितर्क करने की शक्ति प्रदान करती है व्यक्ति स्वयं उचित अनुचित निर्णय ले सकता है अगर ऐसा हुआ तो झूठ और दुष्प्रचार के बल पर हम पर राज करने वालों का क्या होगा आप स्वयं से और विद्वान जनों से यह प्रश्न अवश्य करिएगा क्या संविधान में हमें शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाओं का उल्लेख किया गया है या नहीं अगर किया गया है तो वह आज तक व्यवहार में फलीभूत क्यों नहीं हुई इस संदर्भ में कुछ आंकड़ों के अलावा आपको क्या बताते हैं इस पर गौर करिएगा लोकतंत्र को जनता मजबूत करती है इसके लिए सभी का शिक्षित होना अत्यधिक आवश्यक है इसका दूसरा पहलू भी है जो शायद आप नहीं देख रहे हैं जिनको हम अपना प्रतिनिधि मानते हैं वह हर प्रकार से सक्षम होते हैं वह अपने बच्चों की शिक्षा के लिए एक समांतर व्यवस्था को जन्म देते हैं जहां पर उनके बच्चे पढ़ लिखकर अच्छे पदों पर जाते हैं वही जनसामान्य के लिए जिन विद्यालयों की व्यवस्था सरकारों द्वारा की जाती है वहां पर सामान्य श्रेणी की सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं होती आधुनिक संसाधनों की बात तो बस दिवा स्वप्न जैसा ही लगता है आप कागज पर शिक्षित अवश्य हैं लेकिन आपको वह दृष्टिकोण कभी नहीं मिलेगा जिससे आप अपने भावी जीवन में प्रगति कर सकें जो आपके अंदर की प्रतिभा है
झांकी महाराष्ट्र |
आज इस गणतंत्र दिवस पर हम सब का कर्तव्य है चाहे हम किसी भी व्यवसाय से जुड़े हो अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी पूर्वक करना है जिससे देश प्रगति पथ पर आगे चल सके आने वाली समस्याओं को जड़ से समाप्त करने के लिए एक ऐसा दृष्टिकोण विकसित करना है जो रूढ़ियों से मुक्त हो जिसमें भविष्य में आने वाली चुनौतियों का समाधान छिपा हो या देश हम सबका है इसीलिए प्रयास भी हम सभी को करना होगा किसी दूसरे से उम्मीद करना व्यर्थ है आओ हम सब मिलकर एक ऐसे परिवेश का सर्जन करें जिसे देख कर आने वाली पीढ़ियां गर्व कर सकें और वह जब कहीं विदेशों पर भ्रमण में जाए तो गर्व से कह सकें हम भारतीय हैं ऐसा करने से ही संविधान बचेगा ।
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