आयोजन शब्द कितना सार्थक सन्दर्भ प्रस्तुत करता है जो अपने साथ नई अभिलाषा आशा और उमंग लेकर आता है उमंग ही मानव जीवन को गतिशील और विकास के पथ पर आगे बढ़ाती है तथा आने वाले समय में उसके सम्मुख आने वाली चुनौतियों को सरल करने में प्रेरणा का भी कार्य करती है पर हमें इसके दूसरे पक्ष को भी ध्यान रखना आवश्यक है जो केवल आवश्यक ही नहीं अपितु विकास के लिए महत्वपूर्ण भी है किसी समारोह की सफलता उसके उद्देश्यों में निहित होती है आयोजन के समाप्त होने के बाद एक शैल्य चिकित्सक की भांति उसमें से अच्छे बिंदुओं को गिनना बहुत आवश्यक है पर जो चीजें स्वयं निर्धारित प्रारूप के अनुसार नहीं हो पाई या कुछ कमी रह गई है उन कारणों पर गौर करके भविष्य में सुधार करने का प्रयत्न करें जिससे आप रोग मुक्त हो पाएंगे
इस पृष्ठभूमि भूमि के पश्चात मैं विषय की ओर लौटता हूं कानपुर विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग और राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश की ओर से एक कलाकार कैंप और सेमिनार का आयोजन 14 से 20 नवम्बर के मध्य किया गया जिसमें देश-विदेश के कई जाने-माने कलाकारों ने भाग लिया इस कार्यशाला में देश के कुछ उभरते हुए कलाकारों ने भी अपने कला कौशल के द्वारा अपने मनोभावों को मूर्त रूप प्रदान किया
इस प्रकार के आयोजन निश्चित रूप से विषय के लिए महत्वपूर्ण होते हैं साथ ही यह बात भी गौर करने वाली है यह आयोजन महेज किसी विषय पर विद्वानों के विचारों तक नहीं सीमित रहते वरन इनका एक छिपा हुआ पहलू भी है जिस के महत्व को हम कमतर करके नहीं आंक सकते हैं प्रतिभाग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग परिवेश के होते हैं उनकी आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक और भौगोलिक परिस्थितियां भिन्न भिन्न होती हैं जब इन सभी व्यक्तियों का मेल होता है तो वह महेज दो व्यक्तियों का मेल नहीं होता उनके साथ उनका समाज देश तथा उनके आसपास का वातावरण मिलता है जो सभी व्यक्तियों के लिए प्रेरक हो सकता है यह एक प्रकार का सांस्कृतिक आदान-प्रदान है इसका प्रभाव खासतौर पर विद्यार्थियों पर सबसे अधिक पड़ता है सफल लोगों के अनुभवों एवं जीवन संघर्षों से काफी प्रेरणा ग्रहण करते हैं इसके साथ ही ऐसे आयोजन छात्रों की अंतर्मुखी प्रतिभा को काफी हद तक प्रगट स्वरूप प्रदान करने का अवसर प्रदान करते हैं जो उनके विकास में महत्वपूर्ण कारक सिद्ध होगा यह सब बिना प्रमाण के नहीं कह रहा हूं अगर आप इसका अनुभव करना चाहते हैं तो दृश्य कला विभाग कानपुर विश्वविद्यालय में जाकर विभाग की प्रथम दृष्टया निरीक्षण से ही पहचान लेंगे इसके पश्चात छात्रों से बातचीत कर आपकी सारी जिज्ञासा शांत हो जाएगी उनका सृजन दैहिक भाषा आत्म विश्वास सोचने विचारने की शक्ति आदि पर पड़े प्रभाव को स्वयं अनुभव कर पाएंगे मैंने भी जो देखा और वार्ता से समझ सका उसी के आधार पर लिख रहा हूं
प्रत्येक कलाकृति अपने में महत्वपूर्ण होती है इतना जरूर है सभी कलाकृति श्रेष्ठ नहीं हो सकती क्योंकि श्रेष्ठता का अंतिम पैमाना तो स्वीकार एकता पर निर्भर करता है कला तो भाव की भाषा है भाव चाहे जो हो उसकी सफलता असफलता उसकी स्वीकार्यता पर निर्भर करती है यह बात पूर्ण रूप से चित्रकला पर भी लागू होती है प्रदर्शनी में कलाकारों ने कैनवास पर अंतर्मन को विस्तार प्रदान किया है कहीं पर प्रतीकों का प्रभुत्व है तो कहीं पर प्रतीक और स्थूल रूप दोनों ने समान जगह पाई है कहीं पर खाली स्पेस में कलाकार स्वतंत्र होकर विचरण कर रहा है कहीं पर विषाद है तो कहीं उल्लास
प्रत्येक कलाकार की अपनी कार्य पद्धति है जो उसको समूह से अलग करती है यह विशेषता सारे कलाकारों के काम में दिखाई देती है सारे कलाकारों से मेरा आशय कैंप में भाग लेने वाले वरिष्ठ और कनिष्ठ कलाकारों से है अक्सर जूनियर कलाकार इस अवस्था में फैशन के शिकार होकर अनुकरण की तरफ अपना रुख कर लेते हैं हालांकि धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति कम होती जाती है यहां पर मुझे देखकर काफी अच्छा लगा अनुकरण की प्रवृत्ति ना होकर अपने अंतःकरण की पुकार सुनी गई है तथा सामाजिक स्वरूपों पर अपनी प्रतिक्रिया निजी दृष्टिकोण से की गई है जो कैंप के उद्देश्यों को हासिल करने में और अधिक बल देती है
इस आयोजन को कलाकार के दृष्टिकोण से ना देख कर एक सामान्य दर्शक के दृष्टिकोण से देखना और विचार करना आवश्यक है क्योंकि वही हमारी कला की उपयोगिता को निर्धारित करता है हम उसकी रुचि की अवहेलना नहीं कर सकते हैं जब कोई दर्शक प्रदर्शनी में प्रवेश करता है तो अक्सर वह कैंप में मौजूद किसी भी कलाकार से मिलता है उसका यही उत्तर होता है यह मेरी कृति है यह मेरी कृति है इस प्रकार के उत्तरों से वह पक सा जाता है यह स्थिति और भी खतरनाक तब हो जाती है जब वरिष्ठ कलाकार भी ऐसा करते पाए जाते हैं अब प्रश्न यह उठता है कि कलाकार का व्यक्तिगत कार्य ही श्रेष्ठ है बाकी की पेंटिंग उनके लिए प्रभावहीन है क्या इनके उत्तर खासतौर पर श्रेष्ठ कलाकारों को ही देना होगा ऐसा नहीं है पर विषय को अच्छे भविष्य की ओर ले जाने की जिम्मेदारी आपकी सबसे ज्यादा है आप तो आने वाले कलाकारों के लिए कहीं ना कहीं प्रेरणा का स्रोत भी बनते जा रहे हैं जो आगे चलकर आपके ही कार्यों से प्रेरित होकर कार्य करेंगे
दूसरी सबसे बड़ी कमी अक्सर कलाकारों द्वारा कई ऐसे कैंपों में खासतौर पर सीनियर कलाकार कम समय होने की दुहाई देकर जल्दबाजी में कार्य करके चले जाते हैं हो सकता है उनके सामने समय की मजबूरी भी हो पर अधिकांश कलाकारों के सम्मुख अगर एक जैसी समस्या है तो आयोजक कमेटी ने कलाकारों के चुनाव में अवश्य इस विषय पर गहन विचार-विमर्श नहीं किया होगा वरिष्ट कलाकारों का कैंप में कार्य करने की अपेक्षा विद्यार्थियों और युवा कलाकारों से संवाद स्थापित करना मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इस आधुनिक दौर में हम किसी न किसी माध्यम से उनकी कृतियों तक पहुंच ही जाते हैं पर उनका सृजन पक्ष पर व्यवहारिक दृष्टिकोण और रचनात्मक प्रक्रिया के उतार-चढ़ाव को साझा करना ऐसे कैंपों को और अधिक सार्थक बना सकता है इसका मतलब यह नहीं है कि वर्तमान पद्धति से लाभ नहीं हो सकता है पर इसको और अधिक प्रभावशाली कैसे बनाया जाए सवाल तो यह था
कार्यक्रम के अंतिम 2 दिनों में सेमिनार का आयोजन किया गया सेमिनार में उपस्थित कई विद्वानों ने अपने अपने वक्तव्य दिए जिन्हें सुनकर कला की समझ बढ़ी पर दिल्ली से आए वरिष्ठ कला विद्वान के उठाए प्रश्नों ने हम सब को सोचने पर विवश अवश्य कर दिया है उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कला के टूटे हुए सूत्रों को जोड़ने का कार्य वर्तमान पीढ़ी को ही करना होगा शोध छात्रों शिक्षकों तथा स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य करने वाले लेखकों एवं कला समीक्षकों का ध्यान अपनी तरफ खींचा यहां पर सवाल यह उठता है जब कला जगत से जुड़ी संस्थाएं एवं विश्वविद्यालयों के ललित कला विभाग में लगातार लेखन कार्य होता रहा है पर समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है उसका समाधान नहीं मिल पा रहा है आखिर क्या कारण है जो समस्या के समाधान खोज पाने में असफल रहे हैं निश्चित तौर पर इन पर विचार होना चाहिए मेरा कार्य किसी की आलोचना करना नहीं वरन जो यथार्थ में दिखाई पड़ता है उसे व्यक्त करना है अगर कोई विद्वान किसी समस्या को सबके सम्मुख सार्वजनिक रूप से रखता है तो निश्चित रूप से उसके अध्ययन और समझ की प्रशंसा होनी चाहिए तथा जो उसके विषय के प्रति समर्पण के साथ साथ वर्तमान लेखन में आ रही विषमता को भी दर्शाती हैं यह समस्या अगर लगातार काम करने के बाद उसके अनुभव और अध्ययन के बाद उसके प्रकाश में आई है तो निश्चित रूप से अति महत्वपूर्ण होगी इसका समाधान निश्चित तौर पर कला जगत से जुड़े हुए हर व्यक्ति को खोजने का प्रयास करना चाहिए पर यहां मैं इतना अवश्य कहना चाहूंगा वरिष्ठ अध्यापकों व समीक्षकों की जिम्मेदारी ज्यादा होगी क्योंकि इन्हीं लोगों के सानिध्य पर आने वाली पीढ़ियों की दशा दिशा निर्भर करेगी उनकी कला के प्रति समझ कैसे होगी यह भी वर्तमान शिक्षा पद्धति और लेखन पर निर्भर करेगा अगर सभी लोग अपना योगदान ईमानदारी पूर्वक विद्यार्थियों को सिखाने में देंगे तो समस्या का समाधान किया जा सकता है पर हम जब आज के परिप्रेक्ष्य में इन समस्याओं को देखते हैं तो इनका समाधान दूर-दूर तक नजर नहीं आता देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों द्वारा ललित कला में पीएचडी की उपाधि दी जाती है पर सोचनीय स्थिति यह है कि इनका विषय के प्रति नवीन दृष्टिकोण होने के बजाय पूर्णावृत्ति अधिक है इसके पीछे केवल छात्र स्तर पर लापरवाही नहीं है अपितु निर्देशक और विश्वविद्यालय तथा यूजीसी के स्तर पर भी खामियां हैं
कला जगत से जुड़े संस्थान भी खोज परख लेखों की ओर विशेष रुचि नहीं ले रहे हैं उन्हें भी बस अपना कोरम पूरा करने भर तक स्वयं को सीमित कर रखा है तो ऐसी परिस्थितियों में कला की अनवरत धारा की छोटी-छोटी टूटी हुई धाराओं के बारे में कौन बात करें इन्हें प्रकाश में कौन लाए जो लोग कार्य भी करना चाहते हैं उनके सम्मुख आर्थिक संकट है और उन्हें यह संस्थाएं कोई विशेष आर्थिक सहायता प्रदान नहीं करती है संस्थाओं द्वारा अपवाद मात्र ही ऐसा कार्य किया गया है जो आज के समय में छात्र अध्यापक कला समीक्षक तथा कला जगत से जुड़ी संस्थाओं को अपनी कार्य पद्धति में बदलाव के साथ-साथ नवीन दृष्टिकोण अपनाना होगा केवल कलाकृतियों का निर्माण करना उनका प्रदर्शन करने तक सीमित रखने से बात नहीं बनेगी विषय का क्रमबद्ध और तटस्थ एवं सारी विधाओं पर उचित लेखन कार्य किया जा सके जिससे आने वाली पीढ़ियों को उचित मार्गदर्शन तथा समय के साथ आने वाली चुनौतियों के लिए उनको तैयार किया जा सके
कैंप और सेमिनार के समापन में विद्वानों ने कई महत्वपूर्ण पक्षों पर अपना अपना वक्तव्य रखा है यहां पर मैं राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष के संबोधन का उल्लेख करना चाहूंगा जिन्होंने बताया कि क्षेत्रीय प्रदर्शनों के माध्यम से कला जगत के उन अध्यापकों को जोड़ा गया है जो अब तक अपनी कृतियों के प्रदर्शन से स्वयं को दूर रखते थे निश्चित तौर पर यह कदम प्रशंसनीय है जो आने वाले वक्त में अपना प्रभाव भी डालेगा अभी तक राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश से लगभग में इंटर कॉलेज के अध्यापक कटे ही रहते थे इस प्रयास से उनके अंदर का कलाकार फिर से जागृत हो उठेगा जो कला जगत के साथ-साथ उसके अध्अयापन को भी और अधिक प्रभावशाली बनाएगा ऐसा मेरा मानना है
ललित कला विभाग कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किए गए कैंप और सेमिनार ने निश्चित रूप से वर्तमान कला की दशा और दिशा को दर्शाया है और आने वाली चुनौतियों को भी उजागर किया है सबसे महत्वपूर्ण घटना यह भी है कि लंबे समय के बाद विश्वविद्यालय तथा राज्य ललित कला अकादमी के संयुक्त प्रयास से एक सफल कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसकी सार्वजनिक स्तर पर प्रशंसा होनी चाहिए यहां पर मैं बस इतना कहना चाहूंगा किसी भी आयोजन या संस्था की कमियों को जानना ही महत्वपूर्ण नहीं बल्कि समय रहते उनको सुधारा जाना भी आवश्यक है यह दृष्टिकोण जिस संस्था में होगा वह निश्चित तौर पर भविष्य में प्रगति करेगी पर कमियों के साथ-साथ आयोजनों की अच्छाइयों पर भी बात होनी चाहिए अच्छे कार्यों के लिए उनकी सराहना के साथ-साथ प्रोत्साहन भी आवश्यक है क्योंकि प्रोत्साहन वह प्रेरणा है जो उसे भविष्य में और अधिक परिश्रम करने के लिए प्रेरित करता है अतः मुझे लगता है इन दोनों संस्थाओं के प्रधान और आयोजन समिति के सभी सदस्यों का सम्मान होना चाहिए तथा संस्था जिस व्यक्ति के विशेष योगदान को देखती हो या पूरी कमेटी को सामूहिक रूप से प्रोत्साहित करना चाहिए
अंत में मैं विश्वविद्यालय तथा राज्य ललित कला अकादमी के संयुक्त रूप से सफल आयोजन के लिए धन्यवाद करना चाहूंगा और यह आशा करता हूं आगे भी ऐसे आयोजन कानपुर विश्वविद्यालय के साथ-साथ प्रदेश के सारे विश्वविद्यालय में होंगे जो कला जगत के प्रति सामान्य लोगों की समझ को बदलेगी जिससे कला और दर्शक के बीच बढ़ती दूरी कम हो सकेगी ऐसा मुझे लगता है पर प्रयास के पीछे ईमानदारी का दृष्टिकोण होना आवश्यक है
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