बाल दिवस

     आज बाल दिवस है जैसा कि सभी को विदित है इस दिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के वात्सल्य प्रेम अर्थात बच्चों के प्रति प्रगाढ़ प्रेम के कारण उनके जन्मदिवस को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है भले ही आज जवाहरलाल नेहरू इतिहास में एक पात्र के रूप में दर्ज हैं पर उनका अगाध बाल प्रेम उनके व्यक्तित्व कि स्नेहशिलता स्वीकार्यता समानता आदि भावों के कारण आज भी पूर्णरूपेण प्रासंगिक बनी हुई है भले ही कुछ लोग उनके राजनीतिक एवं अन्य प्रकार के प्रकरणों के आधार पर उनकी आलोचना करते रहे हो पर इस प्रश्न में उन पर कोई आरोप नहीं लगा पाया मैं यहां पर पंडित जवाहरलाल नेहरू के गुणों की प्रशंसा करने नहीं बैठा मेरा कार्य उनके प्रति श्रद्धांजलि देना मात्र था जो मैंने प्रस्तावना में भूमिका के आधार पर दे दी है अब मैं इस दिवस की वर्तमान परिस्थितियों पर समालोचनात्मक रूप से विचार करूंगा
     मेरा हमेशा इस बात पर जोर रहता है केवल किसी तिथि को किसी खास मकसद से नामित कर देने से लक्ष्य प्राप्त नहीं होते इस पर हमेशा से रहा है हो सकता है मैं गलत हूं पर इस संदर्भ में इतिहासिक विवरणों को खोजने पर ऐसा ही प्राप्त होता है व्यक्ति को उचित ध्येय को हासिल करने के लिए उचित प्रयास भी करना पड़ता है 
      आज विद्यालय स्तर पर इस दिन सारे छात्र एकत्र होकर बैठते हैं और शिक्षक उनको इस दिन के इतिहास को बता देते हैं मगर यहां पर संदर्भ विचार योग्य तो है ही कि इतिहास को बदला नहीं जा सकता बल्कि उसकी उपयोगिता बस इतनी है अतीत में हुए अच्छे बुरे कार्यों का मूल्यांकन करके वर्तमान और भविष्य में निर्णय लेने में अहम भूमिका निभाये मेरा मानना है इस दिन पर हमें भी अब प्रगतिवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा यहां पर प्रश्न यह है कि पहल कौन करे मेरा मानना है शिक्षकों को ही पहल करनी होगी क्योंकि शिक्षक ही अबोध बालकों को अपनी प्रतिभा और कुशलता से बोधता की ओर अग्रसर आता है यह उन्हें भी पता है बच्चों को ऐतिहासिक तथ्यों का स्मरण करना अच्छी बात है पर तकनीकी युग में किसी के लिए इस संदर्भ में ऐतिहासिक तथ्य एकत्र करना या पढ़ना कितना सरल है तब आप कैसे उन्हीं रटी रटाई बातों के द्वारा का मार्गदर्शन कर पाएंगे
     बहुत से लोगों का तर्क है यह तो बच्चों का दिन है इस दिन वह जो चाहे कर सकते हैं यह धारणा बच्चों में धीरे-धीरे घर भी करती जा रही है कुछ हद तक सही भी है पर ऐसा ही माहौल कुछ दशकों तक और चलेगा तो सामाजिक और शैक्षिक दृश्य भी व्यापक परिवर्तन भी देखने को मिलेंगे यहां पर विचार करने योग्य तथ्य है बच्चे तो सीखने की प्रक्रिया में हैं भला उन्हें स्वतंत्र कैसे छोड़ा जा सकता है हां इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए उनकी प्रतिभा प्रभावित ना हो बल्कि उसे उचित रूप से प्रशिक्षित किया जा सके मगर यह जितना उनका दिन है से कहीं अधिक हमारा
     समाज और संस्थाओं को हमेशा ध्यान रखना चाहिए बाल दिवस को सिर्फ बालकों का दिन नहीं है यह हमारे सम्मुख जिम्मेदारियों  का भी बोध कराने का दिवस है यही बच्चे आने वाले समय में हमारे देश का भविष्य बनेंगे इनकी प्रगति ही निर्धारित करेगी हमारा समाज और राष्ट्र कैसा हो होगा यही उचित अवसर है कि हम सब मिलकर प्रतिज्ञा करें कि बालकों के प्रति हमारे शैक्षिक एवं सामाजिक कर्तव्यों का उचित रूप से निर्वहन करेंगे क्योंकि यह समस्या किसी एक की न होकर सारी मानव सभ्यता की है
       आज हमारे सम्मुख विभिन्न माध्यमों से सूचनाएं आती रहती हैं जिन्हें सुनकर देखकर एवं पढ़कर मन विचलित हो जाता है देश के प्रत्येक भाग में शोषण की इस कहानी का कोई न कोई बालक जाने अंजाने में पात्र बनता रहता है इन अपराधों के पीछे कई कारण है बढ़ती जनसंख्या भुखमरी बेरोजगारी अशिक्षा एवं क्षेत्रीय कारण भी कार्य करते हैं एक सभ्य समाज जो स्वयं को प्रगतिशील कहता है उन्हीं के लिए एक दिन को समर्पित करता है पर इस शोषण के विरुद्ध कोई ठोस कदम नहीं उठाता है जो प्रयास हुए भी हैं वह मात्र सरकारी फाइलों में बंद होकर रह गए हैं अगर स्थिति यही है तो मानना पड़ेगा कि किसी को इस दिन भी नौनिहालों के ऊपर हो रहे अत्याचारों की कोई परवाह नहीं है यह देखकर स्वर्ग में बैठे पंडित जवाहरलाल नेहरू दुखी जरूर होते होंगे और कहते होंगे मैंने तो ऐसे भविष्य की कल्पना नहीं की थी मेरे देश का भविष्य किस अंधकार की तरफ जा रहा है
      जो भी हो अब मैं अकादमिक छात्रों की बात करूंगा सारी शैक्षिक संस्थाओं में बड़े धूमधाम के साथ बालदिवस मनाया जाता है जब मैं पढ़ता था तब से आज तक हर साल इस दिवस को मनाया जा रहा है पर समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है सारी संस्थाओं का लिखित ध्येय बालक का संपूर्ण विकास है पर व्यावहारिक दृष्टिकोण इससे इतर है पूरे साल अच्छे नंबर कैसे आएंगे इसी पर ध्यान केंद्रित रहता है उसकी व्यक्तिगत प्रतिभा का कोई आदर सम्मान नहीं है जैसे उसके पिताजी ने शिक्षा ग्रहण की थी उसी पद्धतियों के अनुसार उसको भी शिक्षित किया जा रहा है ऐसी स्थिति वर्तमान परिस्थितियों के लिए काफी हद तक हानिकारक है जो समय की मांग को पूरा करने में असमर्थ है जिस ढंग से रोजगार के साधन बदल रहे हैं उस तेजी और तरीकों से संस्थाएं अपनी संरचना और उद्देश्यों को व्यवहारिक रूप में नहीं बदल पाई हैं
       बालकों को सिखाने के लिए जिन परंपरागत माध्यमों का आज हम प्रयोग कर रहे हैं वह भी सही हैं पर हमें जरूरत है अभी से भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार उनको तैयार करने की इसके लिए संसाधनों को बढ़ाने और अपनी क्रिया पद्धति भी बदलनी होगी किसी भी राष्ट्र की नीव वहां की प्रगतिशील तथा कुशल  जनशक्ति रखती है इस समय हमें इसी पर अधिक से अधिक जोर देना होगा तभी बाल दिवस  वास्तव में सार्थक हो सकता है
    कहते हैं इतिहास स्वयं अतीत में जीता है यह पूर्णरूपेण सत्य भी है पर हमें यह नहीं भूलना है कि वह वर्तमान और भविष्य को भी प्रभावित करता है इसलिए हम सब का सामूहिक कर्तव्य है कि इस बाल दिवस पर बालकों में नैतिक चारित्रिक एवं आधुनिक तकनीकी पक्षों का विकास हो इसके लिए हमें कर्तव्यों के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित होना पड़ेगा अगर हम सब ऐसा कर सके तो उस महापुरुष के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी साथ ही बाल प्रतिभा के प्रति न्याय कर पाएंगे जो आने वाले में समाज और देश के लिए अत्यधिक लाभकारी होगा इस बाल दिवस पर आवश्यकता है ऐसा उदाहरण सेट करने की जिससे समाज इसके वास्तविक लक्ष्यों तक पहुंच सके।

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