कला और धर्म
कला मानव संस्कृति को समृद्ध स्वरूप प्रदान करती हैं और सदैव उसके सुंदर सरल रूपों को दृश्य रूप में प्रस्तुत करती हैं तो धर्म मानव को नैतिक और आध्यात्मिक रूप से सबल बनाता है जीवन को अनुशासन प्रदान करता है कलाओं ने भी धर्म के इसी अनुशासन को स्वीकार किया है कला और धर्म दोनों काफी समय तक साथ-साथ चलें और एक दूसरे की प्रगति में सहायक बने।
धर्म ने कलाओं के लिए उचित मार्ग प्रशस्त किया जिन पर चढ़कर कराएं अपने निजी शुरू को प्राप्त करती हैं कलाओं ने भी धर्म की बढ़-चढ़कर सेवा की जो आज विभिन्न रूपों में हमें दिखाई देती हैं जैसे अजंता एलोरा जोगीमरा आदि भारत की नहीं वरन यूरोप के कई देशों में भी ऐसी ही परंपरा विद्यमान है जहां पर कला ने धार्मिक स्थलों को दिव्यता प्रदान करने के लिए अपने विविध रूपों में प्रकट हुई यूरोप में कई प्रकार की स्थापत्य शैलियां तथा चित्रकला की विविध शैलियां देखी गई जिनका संबंध प्रत्यक्ष रूप से धर्म से रहा है
भारतीय कला के संदर्भ में कई विद्वान तो यहां तक कहते हैं कि यहां पर कलाओं का जन्म धर्म की गोदी में हुआ फिर भी हमें इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है धर्म के अंतर्गत रहकर कलाओं ने नैतिकता और अनुशासन का काठ पढ़ा जिसने आगे चलकर उनके विकास की मार्ग को और प्रशस्त किया
भारत में चित्रकला के माध्यम से धार्मिक संदेशों को देने की एक लंबी परंपरा प्राप्त होती है बौद्ध धर्म के प्रचारक जब भारत से बाहर या भारत में प्रचार करने के लिए जाते थे तो अपने साथ विभिन्न प्रकार के चित्रपट लेकर जाते थे जिनके अंदर भगवान बुद्ध से संबंधित चित्र बने होते थे जिन्हें देखकर धार्मिक आदर्शों को शीघ्रता से शपथ ग्रहण कर लेते थे तथा भाषा के संवाद को और अधिक प्रभावशाली बनाते थे भारत में अजंता एलोरा पाल जैन राजस्थानी पहाड़ी आदि चित्र शैलियों में विविध प्रकार की धार्मिक विषय वस्तु का प्रमुखता के साथ चित्रण किया गया है इसका संबंध हिंदू बौद्ध एवं जैन धर्म से रहा है
भारत में जब विदेशी आक्रांताओं का प्रभाव बढ़ा तो अजंता जैसी समृद्ध चित्र शैली का पतन हो गया अब इन विदेशी आक्रमणकारियों से भित्ति चित्रों को सुरक्षित रखना लगभग में असंभव सा प्रतीत होने लगा था इसी कारणवश भारत मैं एक नई चित्र शैली का विकास हुआ जो लघु चित्र शैली या पोथिचित्र शैली के नाम से जानी गई इस शैली में अजंता का विकृत रूप दिखाई देता है इन चित्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर शीघ्रता के साथ ले जाया जा सकता था जो दुश्मन की पहुंच से बहुत दूर थे आगे चलकर इस शैली में कुछ तकनीकी गिरावट को परिष्कृत कर एक उच्च शैली विकसित हुई जिसमें कलागत तत्व अपने उत्कृष्टतम स्तर के हैं
राजस्थानी और पहाड़ी दोनों ही चित्र शैलियों में चित्रों का विषय धार्मिक ही रहा यहां पर रसिकप्रिया भागवत पुराण राग रागिनी राग माला गीत गोविंद रामायण महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथों पर आधारित चित्रों को बनाया गया इसके साथ-साथ अब विषय में परिवर्तन भी दिखाई देने लगा था धार्मिक विषयों के साथ-साथ लौकिक विषयों को भी पर्याप्त महत्व प्रदान किया जाने लगा था
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