रविंद्र नाथ टैगोर (7मार्च 1861- 1941)
रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म जोड़ोसंको पश्चिम बंगाल में हुआ था इनके पिता का नाम देवेंद्र ठाकुर था यह उच्च कोटि के साहित्यकार होने के साथ-साथ नाटककार उपन्यासकार संगीतज्ञ दार्शनिक अभिनेता एवं चित्रकार आदि विधाओं में पारंगत थे 1921 में उन्होंने कोलकाता में शांति निकेतन की स्थापना की तथा 1913 में इन्हें अपनी कृति गीतांजलि के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला 1919 में शांतिनिकेतन में कला भवन की स्थापना की जिसका अध्यक्ष नंदलाल बोस को नियुक्त किया 1926 में यूरोप यात्रा के दौरान इनका झुकाव चित्रकला के प्रति हुआ यहीं पर इन्होंने चित्रकला को देखा और समझा 67 वर्ष की अवस्था में इन्होंने लेखन बंद कर चित्रण कार्य प्रारंभ किया इनकी कला शैली समन्वयात्मक कही जाती है
टैगोर को भारत में आधुनिक अमूर्तकला का जन्मदाता तथा आधुनिक भारत का प्रथम अंतरराष्ट्रीय चित्रकार कहा गया है इनके आरंभिक चित्र पेन स्याही आदि से बने हैं जो काल्पनिक जानवरों तथा मन की अनुभूतियों को अपने में सजोएं हुए है बाद में उन्होंने कपड़ों के टुकड़ों धागों तथा अंगुलियों को स्याही में डूबा कर विविध प्रयोग किए
रविंद्र नाथ के चित्रों में बालकों की भांति स्वछंदता की रीति विद्वमान है जो नाटकीय परंपरा से परिपूर्ण भारतीय एवं यूरोपी कला का सम्मिश्रण है चित्रों में मिश्रित रंगो तथा स्याही का अधिक प्रयोग हुआ है उनके चित्रों में अतियथार्थवाद मुंक पाल क्ली वान गाग आदि की समानताएं भी देखने को मिलती हैं टैगोर के चित्रों का मुख्य विषय अचेतन मन की विभिन्न काल्पनिक क्रियाएं तथा भारतीय नारियां रही हैं
रवि नाथ के चित्रों की प्रथम प्रदर्शनी 1930 में पेरिस की पिगाल आर्ट गैलरी में हुई जहां अत्यधिक प्रशंसा मिली इसके पश्चात अनेक यूरोपीय देशों मुंबई कोलकाता आदि भारतीय स्थानों पर आयोजित हुई 1946 ईस्वी में यूनेस्को द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय आधुनिक कला प्रदर्शनी में इनके 4 चित्र प्रदर्शित हुए
एक टिप्पणी भेजें